
बालोद, बालोद जिले के 16 शासकीय महाविद्यालयों में जनभागीदारी अध्यक्ष का मनोनयन राजनीतिक विवादों का केंद्र बनी हुई है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद, नियमो को खूंटी पर टांगकर जनभागीदारी अध्यक्षों की नियुक्तियां एक बार फिर दो प्रमुख मोर्चों – कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाली राजनीतिक लड़ाई का माहौल बना रही है।
राजपत्र अधिसूचना को दरकिनार कर नही बदल सकते नियम:
दरअसल जिले के सरकारी कॉलेजों में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा दिये गये नियमों में बदलाव कर जनभागीदारी अध्यक्ष बनाने की तैयारी है? इस बारे में जानकारी सामने आने पर युवक कांग्रेस के प्रशासनिक महामंत्री वैभव शर्मा और आदित्य दुबे के द्वारा कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया है कि राजपत्र अधिसूचना को दरकिनार कर नियुक्ति नियम नहीं बदल सकते। ज्ञापन में बताया गया है कि, कार्यालय कलेक्टर के नाम वाले इंटरनेट मीडिया में एक सूचि प्रसारित हो रही है जिसमें जिले के शासकीय महाविद्यालय में जिन्हे अध्यक्ष नियुक्त किया जा रहा है उनमें अधिकांश कभी जनप्रतिनिधि रहे ही नहीं है अर्थात नियमतः गलत है।
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राजपत्र अधिसूचना के बावजूद, नियम के कार्यान्वयन पर असमंजस:
प्रायः यह देखा जाता है कि राजनैतिक पार्टियां अपने वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने नियमों को किनारे कर राजनीतिक नियुक्तियां करती हैं। हालांकि यह नियम के अनुसार उचित नहीं है। राजपत्र अधिसूचना में कहा गया है, राज्य शासन संबंधित नगर निकाय, जनपद पंचायत व जिला पंचायत के सदस्य, विधायक या सांसद में से किसी को जनभागीदारी अध्यक्ष नियुक्त करेगा। बावजूद इसके प्रसारित सूची अनुसार नियुक्ति की तैयारी है। राजपत्र अधिसूचना के बावजूद, नियम के कार्यान्वयन पर असमंजस समझ से परे है।
आपको बतादे जनभागीदारी अध्यक्ष नियुक्ति पर नियमो को दरकिनार किए जाने के मामले पर प्रदेशरुचि ने लगातार खबरे प्रकाशन की है और मामले पर छात्र संघ एनएसयूआई द्वारा कलेक्टर से शिकायत किए जाने की बात पर भी खबर प्रकाशन की थी जिस पर मुहर लग चुका है और मामले में यूथ कांग्रेस ने कलेक्टर के पास शिकायत कर नियमतः जनभागीदारी अध्यक्षों की नियुक्ति किए जाने की मांग की है।
न्यायालयीन प्रकरण बनने की संभावना:
जिले के सरकारी कॉलेजों में प्रसारित सूची अनुसार अगर जनभागीदारी अध्यक्ष की नियुक्तियां होती है तो नियम बदलने की वजह से न्यायालयी प्रकरण बनने की संभावना है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि अगर जिले के सरकारी कॉलेजों में अपने हिसाब से नियमो को दरकिनार कर जनभागीदारी अध्यक्ष की नियुक्तियां होती है तो जाहिर है इसमें नियम प्रक्रिया का उल्लंघन होगा। ऐसे में कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है। इसकी वजह से प्रदेश की पूरी नियुक्ति प्रक्रिया पर भी रोक लगाने का आदेश जारी हो सकता है।