प्रदेश रूचि


जनभागीदारी अध्यक्षों की ‘वायरल लिस्ट’ पर नियम टूटने का विवाद, शुरू हुई प्रेशर पॉलिटिक्स

बालोद,  प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद सभी शासकीय कॉलेजों की जनभागीदारी समितियों के अध्यक्ष एवं सदस्यों का मनोनयन भंग करने के बाद नए सिरे से कवायद की जा रही है। बालोद जिले के 16 शासकीय महाविद्यालयों में भी जनभागीदारी समितियों का मनोनयन होना है। नियमत: राज्य शासन संबंधित नगर निकाय, जनपद एवं जिला पंचायत के सदस्य, विधायक अथवा सांसद में से किसी को अध्यक्ष नियुक्त करता है। लेकिन, कार्यालय कलेक्टर के नाम से सोशल मीडिया में एक सूची वायरल है, जिसमें जिले के 16 शासकीय महाविद्यालयों के जनभागीदारी अध्यक्ष के नाम शामिल है। जिसके बाद नियम टूटने का विवाद खड़ा हो गया है। कारण है कि वायरल सूची में जनभागीदारी अध्यक्ष के तौर पर जिनका नाम है, उनमें एक-दो को छोड़कर कोई जनप्रतिनिधि है ही नही।

गौरतलब हो कि, कॉलेजों में जनभागीदारी समिति नियम पहली बार 1996 में बनाए गए थे। इसके मुताबिक जनभागीदारी समिति के कार्यकलापों का प्रबंधन सामान्य परिषद के निर्देश नियंत्रण में किया जाता है। यह समिति की सर्वोच्च सभा होती है एवं इस सभा का अध्यक्ष राज्य शासन द्वारा नियुक्त किया जाता है। राज्य शासन संबंधित नगरीय निकाय, जनपद एवं जिला पंचायत के सदस्य, विधायक या सांसद में से नियुक्त करता है। लेकिन वायरल सूची में लगभग नाम ऐसे हैं जो जनभागीदारी अध्यक्ष के पद के लिए शासन द्वारा तय जरूरी योग्यता पूरी नहीं करते।

हालांकि इस नियम में 2015 को संशोधन कर गणमान्य नागरिक जोड़ा गया। गणमान्य नागरिक के लिए शर्त लगाई कि वह न्यूनतम स्नातक उपाधि प्राप्त हो। उसने कम से कम एक लाख रुपए महाविद्यालय को दान के रूप में दिया हो। लेकिन 2018 को शासकीय महाविद्यालयों में जनभागीदारी समिति के नियम में संशोधन कर गणमान्य नागरिक जो न्यूनतम स्नातक उपाधि प्राप्त हो तथा कम से कम एक लाख रुपये महाविद्यालय को दान के रूप में दिया हो, नियुक्त किया जायेगा को विलोपित कर दिया गया।

अब ऐसे में कार्यालय कलेक्टर के नाम से सोशल मीडिया में वायरल सूची को लेकर विवाद शुरू हो गया है। इनमें से अधिकांश नाम ऐसे हैं जो जनभागीदारी अध्यक्ष के पद के लिए शासन द्वारा तय जरूरी योग्यता पूरी नहीं करते हैं। यानी शासन खुद अपने नियमों को ताक पर रखकर अध्यक्ष पद पर सत्ताधारी नेताओ को बैठाने की तैयारी में है। सूची में शामिल नामो में सत्ताधारी दल भाजपा के पदाधिकारी या कार्यकर्ता हैं।

इस सूची को वास्तविक मानते हुए पूरे इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर दिया गया। जिसके बाद बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया। हालांकि महाविद्यालय प्रबंधन के पास मनोनयन का आदेश आया नही। जनभागीदारी अध्यक्ष निर्वाचित पद नहीं है। दरअसल इस पद पर प्रभारी मंत्री की अनुशंसा व कलेक्टर की अनुमोदन पर मनोनीत किया जाता है।

मामले में लोगो का कहना है कि, शासन को अध्यक्षों की सूची के साथ नियम भी भेजना चाहिये। साथ ही कहा है कि जो आम शहरी हैं उन्हें गणमान्य नागरिक के तौर पर समिति में अध्यक्ष नही बनाया जाना चाहिये। नियमों का पालन करने पर ही नियुक्तियां मान्य होनी चाहिये। वायरल सूची के आधार पर जनप्रतिनिधियों के सम्मान पर भी संकट खड़ा हो गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!