बालोद-कोरोना काल और लॉकडाउन की आर्थिक क्षति और इस पर महंगाई की मार से आम आदमी का दम निकल रहा है। पेट्रोल डीजल के दाम आसमान को छू रहे हैं। बालोद में पेट्रोल शतक के करीब पहुच चुका है और डीजल भी महज कुछ रुपये दूर रह गया है।गुरुवार को पेट्रोल का रेट 99.42 और डीजल 97.75 रुपए तक पहुंच गया। देश में कई जगहों पर पेट्रोल के दाम ने सेंचुरी लगाने के बाद कृषि प्रधान जिला बालोद में भी सेंचुरी के करीब पहुच चुका है । डीजल के दाम भी सेंचुरी के करीब पहुंच गए हैं। बीते छह महीने में डीजल और पेट्रोल के दाम में लगभग 20 रुपये प्रति लीटर की वृद्घि हुई है। इन छह महीनों में वैश्विक महामारी करोना के चलते जो हालात बने उससे लोग उलझे रहे और इस बीच पेट्रोल-डीजल के दाम ने रिकार्ड बढ़त बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। लगातार बढ़ रहे डीजल और पेट्रोल के दामों का ही परिणाम है कि आज दैनिक उपयोग की लगभग सभी चीजों के दामों में खासा इजाफा हो चुका है। एक ओर जहां लोगों की आमदनी कम हुई है, दैनिक उपयोग की चीजों के लिए रोज जूझ रहे हैं, वहीं बढ़ी हुई महंगाई ने लोगों के कमर तोड़ कर रख दी है।
किसानों की लागत बढ़ी पर उपज के दाम नहीं बढ़ पाए
एक ओर जहां लगातार केंद्र सरकार कहती है कि वह किसानों की आय दोगुनी करना चाह रही है। इसके लिए तरह-तरह की योजनाएं भी समय-समय पर बताई जाती हैं किंतु इसे विडंबना ही कही जा सकती है कि वास्तव में किसान डीजल के बढ़े हुए दाम के चलते कितने परेशान हैं। डीजल के दाम बढ़ जाने के चलते किसानों की उत्पादन लागत बढ़ चुकी है, लेकिन उनकी उपज के दाम नहीं बढ़ पा रहे हैं। यह किसानों के लिए बड़ी परेशानी का कारण है।
बढ़ती महंगाई से पीस रहे मध्यमवर्गीय
डीजल और पेट्रोल के दामों में लगातार हो रहे इजाफा का सबसे ज्यादा कहर मध्यमवर्गीय परिवार पर टूट रहा है। विपक्ष भी महज एक या दो दिन धरना-प्रदर्शन कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री करना समझ लेता है। वहीं सरकार लगातार डीजल और पेट्रोल के दामों में वृद्धि कर मध्यम वर्गीय परिवार पर एक तरह से कहर बरपाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। परिणाम स्वरूप दैनिक उपयोग की सभी चीजें लगातार महंगी होती जा रही हैं, आम आदमी की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। भवन निर्माण की सामग्री भी लगातार महंगी होती जा रही है। ट्रांसपोर्टिंग महंगी होती जा रही है। अब यात्री बसों के संचालकों ने भी डीजल के बढ़ते दाम के चलते मोर्चा खोल दिया है। बहरहाल इन तमाम हालातों के चलते मध्यम वर्गीय परिवार दैनिक उपयोग की आवश्यकताओं के लिए जूझ रहा है, पर विडंबना ही कही जा सकती है कि इस बात की परवाह किसी को नहीं है।