दल्ली राजहरा। कुसुमकसा के जनपद सदस्य संजय बैस क्षेत्र की समस्या सुलझाने के साथ-साथ अपने समाज सेवा कार्यों के लिए जाने जाते हैं। इस क्रम में आगामी हलषष्ठी व्रत के लिए माताओं के इस व्रत में सहभागी बनते हुए बेटे संजय बैस ने योगदान दिया है। 500 माताओं को उन्होंने अपनी ओर से निशुल्क पसहर चावल का वितरण किया। पसहर चावल जो की काफी महंगा आता है। मुट्ठी भर चावल लेने में भी कुछ महिलाओं को आर्थिक दिक्कत भी हो जाती है। ऐसे में बेटे संजय बैस ने एक पुत्र का धर्म निभाते हुए हलषष्ठी व्रत रखने वाली माताओं को अपनी ओर से पसहर चावल दिया। ग्राम अरमूरकसा और टोला पारा में उक्त पसहर चावल का वितरण किया गया और सभी माताओं को कमरछठ व्रत की अग्रिम शुभकामनाएं दी गई। अपने संतानों के दीर्घायु के लिए रखे जाने वाले इस व्रत पर जनपद सदस्य संजय बैस की ओर से पसहर चावल पाकर माता ने प्रसन्नता व्यक्त की। तो साथ ही संजय बैस को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दी। इस दौरान माताओं के चेहरे पर खुशी देखने को मिल रही थी। पैकेट में पहले से तैयार पसहर चावल का वितरण प्रत्येक घरों में जाकर जनपद सदस्य संजय ने किया। उनके साथ इस काम में मुरली यादव, गौरी शंकर साहू, गोविंद सिन्हा योगेश धनकर सोमनाथ रावते तिलक साहू आदि ने भी योगदान दिया।
क्या होता है पसहर चावल
बता दे कि कमरछठ यानी हलषष्ठी के व्रत पसहर चावल का विशेष महत्व होता है। इस दिन माताएं अपनी संतानों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है और किसी भी तरह के हल चले हुए अनाजों का सेवन नहीं करती है। पसहर चावल स्वमेव उगता है। प्राकृतिक रूप से उगने वाले धान के पौधे से यह चावल बनता है। इसमें किसी तरह से हल नहीं चला होता और इसी कारण यह आसानी से और सुलभ सस्ता भी नही मिलता। व्रत के बाद एक तरह से खिचड़ी बनाकर पूजा होने के बाद शाम को माताएं इसे प्रसाद स्वरूप खिचड़ी जैसा बनाकर सेवन करती हैं। पसहर चावल आसानी से मिलता नहीं है इसलिए यह थोड़ा महंगा भी आता है। माताओं की तकलीफ को समझते हुए अपनी ओर से व्रत में योगदान देने के लिए संजय बैस ने यह अच्छी पहल की। जिसकी माताओं सहित ग्रामीणों ने भी काफी सराहना की। इस अवसर पर योगेश्वरी निर्मल्कर केलेश्वरी कौशिक कृतका रावते रेशमा यादव गुजिता चुनेश्वरी कौशिक खेमीन्न ममता मात्रे फुलेश्वरी पवन दीपा रागनी शर्मा प्रभा हेमलता सोहद्री लोहारा दाई शांता बाई ममता उमेश्वरी जागेश्वरी पुष्पा प्रतिमा हिरमाेतिन गीता बाई सुमन डाली का सहयोग रहा।