बालोद-जिला मुख्यालय के महावीर भवन में चल रहे प्रवचन श्रृंखला में जैन संत ऋषभ सागरजी म सा का जीवन दर्शन पर आधारित व्याख्यान चल रहा है। संतश्री ने सहनशीलता पर चल रहे अपने उद्बोधन को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सहनशील व्यक्ति दूसरों को सुधारने की क्षमता भी रखता है, अहिंसा के सामने हिंसा को झुकना ही पड़ता है।जिस तरह युद्ध मे तलवार के साथ ढाल भी जरूरी होता है उसी तरह व्यवहारिक जीवन मे सहनशीलता का ढाल भी आवश्यक है।जिस तरह सागर ,नदियों को समाहित करने की क्षमता रखता है उसी तरह जीवन मे सहनशीलता का गुण आवश्यक है।वर्तमान परिस्थितियों में परिवार को सुखमय बनाने के लिए सहनशीलता का गुण विकसित करना आवश्यक है।सहनशीलता का लेबल कम होता है तो क्रूरता बढ़ती है।जरा सी डांट असहय लगती है।आज क्रूरता इतनी बढ़ गई है कि लगता है जैसे लोग आग के गोले पर बैठे हों।हत्या या आत्महत्या मामूली बात हो गई है ।यह गुण स्वयं को बदल सकता है तथा दूसरों को भी बदलने की क्षमता रखता है।इस गुण से परिवार में सामंजस्य बना रहता है।परिवार बदलेगा तो समाज और देश भी बदलेगा।सहनशील व्यक्ति गुणी-अवगुणी सभी व्यक्ति से संयमित व्यवहार कर सकता है।कब ,कंहा कैसे बोलना इसका ध्यान रख सकता है।किसी के दोष देखते रहने से दोष बढ़ते हैं और गुणों को देखने से गुण बढ़ते है अतः हमेशा अपने अंदर सकारात्मक भाव बनाये रखें।भगवान को मानने वाला व्यक्ति कर्म के सिद्धांत को मानता है।कष्ट आने पर उसे सहन करता है किसी पे दोषारोपण नही करता।भगवान महावीर स्वामी को भी कितने कष्ट सहने पड़े थे।उन्हें अपना आदर्श मान कर यह गुण बढ़ा सकते हैं।सहनशीलता कायरता नही अपितु वीरता की निशानी है ।आदर्श परिवार के लिए यह सर्वोत्तम गुण है।आज राजनांदगांव एवम रायपुर से दर्शन,वंदन एवम व्याख्यान का लाभ लेने श्रावक श्राविकाएं आये थे।
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- *सहनशीलता कायरता नही अपितु वीरता की निशानी है…आदर्श परिवार के लिए यह सर्वोत्तम गुण है – संत ऋषभ सागरजी*