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*बालोद में आयोजित महत्तम महोत्सव में 09 से 25 वर्ष तक 85 प्रशिक्षणार्थियों ने लिया हिस्सा… ईधर संत बोले अपनी सोच को विराट को बनाएं , तभी हमारा शिविर में भाग लेना होगा सार्थक*

बालोद-महत्तम महोत्सव अंतर्गत आचार्य श्री रामेश सुवर्ण दीक्षा महोत्सव पर आयोजित परिज्ञा पांच दिवसीय आवासीय समता संस्कार शिविर का आयोजन बालोद के महावीर भवन में आयोजित किया गया, जिसमें 88 शिविरार्थियों जो कि 9 वर्ष से 25 वर्ष तक के बालक बालिकाओं ने भाग लिया यह शिविर आचार्यश्रीरामेश की आज्ञानु वर्तनी सुशिष्या शासन दीपिका श्री मंजुलाश्रीजी मसा आदि ठाणा चार के सानिध्य में आज संपन्न हुआ / जिसमें बालक बालिकाओं को धर्म के प्रति कैसी जागरूकता हो? , ज्ञान एवं धर्म आराधना के साथ-साथ संस्कारों की महिमा का आचरण जीवन पर विषय पर विशेष तौर पर बतलाई गई, इस शिविर में अंचल के दूरस्थ क्षेत्रों कवर्धा ,खैरागढ़ ,देवरी, अछोली, भीमकनहार, कुसुम कसा, दल्लीराजहरा से भी बालक बालिकाएं शिविर में भाग लेने के लिए शामिल हुए हैं।


अपनी सोच को विराट को बनाएं , तभी हमारा शिविर में भाग लेना होगा सार्थक

महासती श्रीमंजुलाश्रीजी मसा ने महावीर भवन में आयोजित प्रवचन श्रृंखला के दौरान आज कहा की श्री संघ के प्रबल पुरुषार्थ से संघ के सदस्यों की भावनाओं एवं शिविर में भाग लेने वाले बालक बालिकाओं के परिश्रम से शिविर का आज पांचवा दिवस संपन्न हुआ, जिनके माध्यम से प्रभु की वाणी जन जन तक पहुंचे एवं खास तौर पर बालक बालिकाओं जो आज के इस आधुनिकता व भौतिकतावादी के दौर में जहां संसाधनों में सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, ऐसे में यह बच्चे अपने अनमोल पांच दिवस धार्मिक क्रियाकलाप में लिप्त रहे जहां पर इन्होंने ज्ञान ध्यान ,धर्म आराधना के साथ संस्कारों पर ज्ञान प्राप्त कर अर्जन किया, प्रभु की वाणी सचेत सावधानी पूर्वक ग्रहण करें , यह आने वाले समय में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होंगे , किसी का अनादर न करें, कटु वचन नहीं बोल ,अपनी सोच को विराट को बनाएं / तभी हमारा शिविर में भाग लेना सार्थक होगा, प्रभु की वाणी शीतलता वाली होती है जिसका अनुभव सभी ने किया

संसार में दो चीज ऐसी है जिनको बचाया नहीं जा सकता

साध्वी श्रीसुसारिका जी मसा ने कहा की अनंत दुखों को सहन करके हमारी आत्मा दुर्लभ मानव भव को प्राप्त कर चुकी है प्रमाद व गफलत को छोड़कर सावधानी की जरूरत है ,संसार में दो चीज ऐसी है जिन जिनको बचाया नहीं जा सकता टूटते आयुष्य को व डूबतू सूर्य को , समय का पल भर का भी भरोसा नहीं धर्म आराधना कर लेवे , बाह्य जगत की दृष्टि में घूमे तो देखते हैं कि शरीर को साल कंबल की, आंखों को चश्मा की, धन की सुरक्षा के लिए तिजोरी की ,घर की रखवाली के लिए चौकीदार और कुत्ता रखते हैं, बाह्य जगत में हम सब कुछ कर लेते हैं लेकिन आत्मा की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखते ,हमें हमेशा सजक सतर्क व जागरूक रहना चाहिए

बैंकों में बैलेंस बढ़ाते नहीं चले बल्कि अपनी पुण्यवानी का करे संचय

साध्वी जी ने आगे कहा कि प्रकृति जगत में प्रभु कहते हैं कि यह संसार भी लौट कर आने वाला है जो हम संसार को देंगे वही पुनः हमें वापस मिलेगा, सभी बच्चे प्यार प्रेम सम्मान चाहते हैं जीवन में कोई भी प्राणी दुख नहीं चाहता, जीवन का दुख कष्ट नहीं चाहता, इसके लिए हमें भी किसी को कोई भी कष्ट नहीं देना चाहिए, प्रभु का सिद्धांत भी यही कहता है सभी सुख में रहेंगे हमें भी किसी को कष्ट नहीं देना वह अनादर नहीं करना है ,सभी से अच्छा व्यवहार करें ,बुजुर्गों को मान-सम्मान ,माता-पिता को सम्मान व अन्य लोगों से प्रेम से रहे ,बातों बातों में बड़ों की बात नहीं काटना चाहिए उनकी अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए/ यह जान लें सभी के कर्म पलट कर आएगा , वह यह नहीं देखता कि आप अभी किस स्थिति में हो सुख में हो या दुख में? वह सभी को भोगना पड़ता है धर्म कभी भी धोखा देने वाला नहीं है , धर्म मन को वाणी को शांति प्रदान करने वाला है उन्होंने आवाह्न किया कि सभी बुजुर्ग धर्म की सुरक्षा करें ,त्याग तपस्या व धर्म आराधना के साथ सामयिक प्रतिदिन करने का आह्वान करती है बताया कि सामयिक अनमोल है , त्याग तपस्या ज्ञान अर्जुन की कोई गिनती नहीं होती सिर्फ हम बैंकों में बैलेंस बढ़ाते नहीं चले बल्कि अपनी पुण्यवानी का संचय करें यही पुण्यवानी इस मानव भाव के बाद साथ में जावेगी, जिनवाणी धर्म सुनने से आत्मा हल्की व पुण्यशाली बनती है।

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