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नवरात्रि के दौरान साहू समाज के इस पहल से महिलाओं को इन पुराने नियमो से मिलेगी आजादी ..साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष का यह निर्णय अन्य समाजों के लिए भी बन सकता है मिसाल…क्या है यह पहल..पढ़े सबसे पहले प्रदेशरूची पर

बालोद- आज देश अलग अलग हिस्सों में रूढ़िवादी मानसिकता   के   कारण   स्त्री   चाहे   जिस   भी   वर्ग   जाति   समूह   की   रही   हो   वह   जन्म   से   ही   अपने   आपको   असहाय   और   अबला   समझकर   सदैव   पुरुषवादी   मानसिकता   का   शिकार   होती   रही   है।   आज   समाज   में   तमाम   तरह   के   बंधनों   से   जकड़ी   महिलाएं   स्वयं   की   मुक्ति   और   अपनी   अस्मिता   के   लिए   देश   के   हर   कोने   से   आवाज   उठा   रही   हैं।   “स्वामी   विवेकानंद   ने   भी   कहा   है   कि   जब   तक   महिलाएं   स्वयं   अपने   विकास   के   लिए   आगे   नहीं   आएंगी   तब   तक   उनका   विकास   असंभव   है।”

 किसी   ने   ठीक   ही   कहा   है   कि   किसी   देश   के   सांस्कृतिक   स्तर   का   पता   लगाना   है   तो   पहले   यह   देखो   कि   वहां   की   स्त्रियों   की   अवस्था   कैसी   है। 

 मनु   ने   भी   कहा   है   यत्र   नार्यस्तु   पूज्यन्ते   रमन्ते   तत्र   देवता : ।   अर्थात   जहाँ   स्त्रियों   को   सम्मान   की   दृष्टि   से   देखा   जाता   है।   वहाँ   पर   पुरुषों   की   गिनती   स्वत :  देवताओं   की   कोटि   में   की   जाती   है।

   इस   परिवर्तनशील   समाज   में   वैदिक   काल   के   बाद   स्त्रियों   की   स्थिति   काफी   उतार – चढ़ाव   भरी   रही   है।   आज   भी   स्त्रियाँ   अपने   अधिकार   के   लिए   सामाजिक   रूढियों   परम्पराओं   और   अपने   अस्मिता   के   प्रश्न   को   लेकर   जूझती   नजर   आ   रहीं   हैं।

लेकिन इस बीच छत्तीसगढ़ के साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष टहल साहू ने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान अपने समाज के महिलाओं को लेकर एक पहल की है । और छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ के द्वारा समाजिक नियमावली के परिपालन के सबंध में प्रदेश के जिलाध्यक्षों को जिला परिपालन व ग्रामीण स्तर तक तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश जारी किया गया हैं। छग साहू समाज के अध्यक्ष टहल सिह साहू ने प्रदेश के साहू समाज के जिलाध्यक्षों को समाजिक नियमावली के परिपालन के सबंध में पत्र जारी कर जिला व ग्रामीण स्तर पर तत्काल प्रभाव से लागू करने निर्देशित किया है। छग साहू समाज के अध्यक्ष टहल सिह साहू ने जारी किए गए पत्र में बताया कि छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ के संसोधित एकीकृत नियमो के अनुसार निम्न नियम का परिपालन किया जाना अनिवार्य है। छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ के नियमावली भाग 2 के अनुछेद (25) के अनुसार विधवाओं माता बहनों को धार्मिक विवाह व सभी मांगलिक कार्यो में भाग लेने की पूरी स्वंत्रता प्रदान की जाती है। साथ ही साथ विधवा मा अपने बच्चों की शादी ब्याह में अपने पुत्र-पुत्री का मौर सोपने का पूर्ण अधिकार प्रदान किया जाता है । प्राय समाज में यह भी देखा जा रहा है कि यदि माता बहन विधवा हो जाती है तो दशगात्र कार्य में चूड़ी का कार्यक्रम तालाब में किया जाता है उसे समाप्त कर चूड़ी उतारने का कार्यक्रम समाज के बुजुर्ग माताओं के द्वारा घर पर ही किया जाय उसके पश्चात सिर्फ दशमात्र कार्यक्रम तालाब में किया जाये परन्तु चूड़ी उतारने का कार्य घर पर ही किया जायेगा। साथ ही साथ दाह संस्कार प्रक्रिया में भी सरलीकरण किया जाय। किसी प्रकार अधिक दंड न लिया जाये ।छग साहू समाज के अध्यक्ष ने सभी जिला परिपालन ग्रामीण स्तर तक तत्काल प्रभाव से लागू कराये जाने के लिए जिलाध्यक्षों को पत्र जारी किया गया हैं। साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा लिए गए यह निर्णय निश्चित अब अन्य समाजों के लिए भी बड़ा उदाहरण व मिसाल साबित होगा और कहां जा सकता है साहू समाज द्वारा लिए गए यह निर्णय अब अन्य समाज में भी लागू करने पर विचार किए जा सकते है ।

 

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