बालोद-बालोद जिले का ग्राम झलमला जिसकी दूरी जिला मुख्यालय से महज चार किलोमीटर दुरी पर स्थित ग्राम झलमला में होलिका दहन नही करने की परपरा पूर्वजो से चली आ रही हैं जिसे ग्रामीण आज भी निभा रहे हैं। एक ओर जहां पूरा भारत देश सत्य के प्रतीक वासुदेव तथा अत्याचार के स्वरूप हिरण्यकश्यप के इतिहास को यादकर वरदान प्राप्त होने के बाद भी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रहलाद का कुछ न कर सकी सच्चे भक्त की जीत को लेकर होलिका दहन का त्योहार मनाया जाता है तो वहीं ग्राम झलमला और चंदनबिरही में होलिका दहन नहीं किया जाता हैे।
ग्राम झलमला का क्या है इतिहास
ग्राम झलमला में 110 सालों से होलिका नहीं जलाई जाती। यहां होलिका न जलाने का रिवाज बुजुर्गों ने शुरू किया है। जिसका पालन अभी तक युवा पीढ़ी करते आ रहे हैं। इसे परंपरा कहे या अंधविश्वास लेकिन धार्मिक स्थल गंगा मैय्या के कारण प्रसिद्घ ग्राम झलमला में न तो होलिका दहन की जाती है और ना ही दशहरे पर रावण दहन किया जाता है। साथ ही दीपावली पर गौरा-गौरी की पूजा नहीं होता और क्वांर नवरात्रि में जब झलमला में नवरात्र महोत्सव की धूम रहती है, तब भी वहां दुर्गा प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती। लेकिन यह जानकर अचरज होगा कि यहां सभी त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। होली पर्व पर लोग रंग-गुलाल से सराबोर हो जाते है, फाग गीत गाए जाते हैं। दीपावली पर पूरा गांव दीपों से जगमगा उठता है, पटाखे जलाए जाते है। मिठाइयां बांटी जाती है। इस तरह त्योहार मनाने में ग्रामीणों को कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन होली जलाने या रावण दहन करने में ग्रामीणों को झिझक होती है।
अनिष्ट का डर।
ग्रामीणों कहना है कि यह परंपरा पिछले 100 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है। ग्रामीणों की मानें तो बुजुर्ग होलिका दहन न करने के पीछे कई तरह के तर्क देते हैं। उनके बुजुर्ग ने उन्हें बताया है कि होलिका दहन करने से गांव में कुछ बुरा हो जाएगा, जिसके पीछे पुराने समय में अज्ञानतावश होलिका दहन करने से गांव में हुए घटना के बारे में भी बताया। साथ ही समय के साथ-साथ यह बात गांव के लिए परंपरा बन गई। बहरहाल, आज इस गांव के ग्रामीण इस परंपरा को निभाते हुए होलिका दहन तो नहीं करते लेकिन होलिका दहन के दूसरे दिन रंग-गुलाल और नगाड़ों के साथ होली जरूर खेलते हैं। जब ग्रामीण सभी त्योहारों को पूरे उत्साह के साथ मनाते है तो होलिका और रावण पुतला दहन क्यों नहीं करते जब इस सवाल का जवाब पता लगाने के लिए कुछ ग्रामीणों से बातचीत की तो कोई खास वजह सामने नहीं आयी। ग्रामीणों के अनुसार गांव में मान्यता है कि ऐसा करने से ग्राम देवता और ग्राम देवी, डिहवारिन देवी, दादा जोगीराव, बैगा भंडारी और गंगा मैय्या नाराज हो जाएंगी। देवी-देवता नाराज हो जाए तो भारी अनहोनी हो सकती है। लेकिन ग्रामीण यह बता नहीं पाए कि क्या अनहोनी हो सकती है। झलमला ग्रामीणों का कहना है कि अनावश्यक बहस और चर्चा से बचने के लिए इसे हम परंपरा ही मान ले तो बेहतर है। अन्य ग्रामीण बताते है कि यह परंपरा 110 साल पुरानी है। उन्होंने अपने जीवन में यहां कभी होली जलते और रावण दहन होते नहीं देखा है। जब इतने सालों से यह परंपरा चली रही है तो इनके पीछे कोई खास महत्व हैं।