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होली को लेकर बाजार में दिखी भीड़..दो साल बाद दिखेगी अंचल में होली की धूम..लेकिन होली को लेकर क्या है मान्यता

बालोद-आधुनिकता के चकाचौंध में नगाड़े की शोर गुम हो गई है। अब यदा कदा ही नगाड़े की शोर सुनने को मिलती है। पहले बसंत पंचमी से ही नगाड़ा बजना शुरू हो जाता था, जबकि बड़ी संख्या में लोग फाग गीत गाने जुटते थे। अभी महज होलिका दहन और इसके दूसरे दिन ही नगाड़ा बजता है। बदले दौर में नगाड़े का स्थान डीजे ने ले लिया है। अब लोग डीजे की धुन पर थिरकते हैं। चारों ओर फाग गाने वालो का मस्ती भरा शोर स्वस्थ पारंपरिक लोकगीत लोगों के उत्साह को दोगुना कर देते थे पर अब समय के साथ फाग गीतों की परंपरा ही विलुप्त हो रही है। वहीं पूरा जीवन शैली ही खत्म होने के कगार पर है। फाल्गुन माह आते ही जगह-जगह पर फाग गीतों के लिए अलग से व्यवस्था की जाती थी शाम ढलते ही नगाड़े का शोर लोगों को घर से निकलने के लिए विवश कर देते थे। साथ मिल बैठकर पारंपरिक फाग गीतों की ऐसी महफिल जमती थी, कि राह चलने वाले भी कुछ पल ठहर कर इस मस्ती भरे पल को अपने जेहन में उतार लेना चाहते थे।आज की रात होलिका दहन होगा और शुक्रवार को होली का त्योहार मनाया जाएगा। त्योहार महज एक ही दिन शेष है लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्र से अब तक फाग गीत और नगाड़ों की धुन गायब है। गली मुहल्लों में होलिका दहन के लिए तैयारी शुरू प्रारभ हो गया हैं । पहले त्योहार के15-20 दिन पूर्व ही गली मोहल्लों में फाग गीत के साथ नगाड़ा बजाया जाता था। होलिका दहन के लिए लकड़ी एकत्र करने का काम भी शुरू हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता।


मोबाइल का आया जमाना

 

पहले लोगों के पास मनोरंजन के साधन की कमी होने से तीज त्योहार के अवसर पर खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते और पर्व के अनुरूप उसमें भागीदारी निभाते थे। परंतु समय के परिवर्तन होने के साथ ही साथ आधुनिक संसाधनों के इजाफा होने लगा। इससे आम लोगों के पास मनोरंजन के साधन के रूप में टीवी मोबाइल व सोशल मीडिया के रूप में कई सारे विकल्प एवं सुविधा सहज रूप से उपलब्ध हो गई है जिसके चलते लोगों को घर बैठे ही सभी प्रकार की सुविधा मुहैया हो जा रही है। इसलिए लोगों के द्वारा बाहर में एंजॉय करने की अपेक्षा अपने व अपने परिवार के साथ ही बैठकर सभी तरह के कार्यक्रम का लुफ्त उठा रहे हैं।

राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम से जुड़ा है होली का त्योहार

होली का त्योहार राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। बसंत में एक दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा वृंदावन की होली राधा कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्घ है। होली पर होली जलायी जाती है, अहंकार की अहं की, वैर-द्वेष की, ईष्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्घ प्रेम।

कार्टून चश्मा, छत्तीसगढ़ी पगड़ी और मुखौटा।
होली का मजा सिर्फ रंग या गुलाल खेलने से ही नहीं बल्कि मजेदार सूरत बनाने से भी आता है। बाजार में होली के अवसर पर मजेदार सूरत बनाने के लिए कई एसेसरीज उपलब्ध है। इसमें मोटे और बड़े फ्रेम के चश्मे, छत्तीसगडी पगड़ी, मलिंगा टोपी, माइकल जैकसन बाल, रंगीन हेयर एक्सटेंशन, बार्बी की चोटियां है। रबड़ प्लास्टिक के बने मुखोटे भी हैं।

होली के बाजार में आयी बहार

होली के त्योहार में अब महज एक दिन शेष बचा है ऐसे में बाजारों में रंगों की रौनक दिखाई देने लगी है।होली खेले जाने वाले रंग के लिए सदर बाजार बुधवारी बाजार,पुराना बस स्टेण्ड,फव्वारा चौक,इंदिरा चौक समेत प्रमुख बाजारों में रंगों की दुकानों पर माल आ गया है। फागुन के रंगों को और रंगीला बनाने के लिए दुकानदारों की मानें तो बाजार में मजेदार मुखोटे दाडी मूंछ डिजाइनर टोपियां पगड़ी में उपलब्ध रहेंगे इस बार होली के बाजार में दूर तक रंग फेंकने वाली पिचकारी या प्रमुखता से दिखाई देंगी साथ ही रंग फेंकने वाले बम और पटाखे भी युवाओं को खासे पसंद आएंगे।

-कलर स्प्रे गुलाल बम और रंगीन फुलझड़ी

होली पर रंग खेलने के लिए बाजार में पिचकारी गुलाल बम रंगीन फुलझड़ी उपलब्ध रहेगी। दुकानदारों की मानें तो गुलाल बम को फोड़ते ही इसमें से गुलाल की फुहार छूटेगी। गीले गुलाल के अलावा सूखे गुलाल के भी पटाखे बाजार में उपलब्ध है। दुकानदारों के अनुसार इनकी कीमत 50 रूपए से शुरू है।

कार्टून कैरेक्टर की पिचकारी

दुकानदारों के अनुसार बच्चों के लिए कार्टून कैरेक्टर की पिचकारी, बार्बी बैग पिचकारी, जोकर पिचकारी, स्कूल बैग पिचकारी, मास्क बेनटेन, दाड़ी मूंछ, बार्बी का चेहरा, गुलाल का स्प्रे प्रमुख है। लड़कों के लिए मिकी माउस पिचकारी, हथौड़ी पिचकारी खास है। 50 रूपए से लेकर 1500 रूपए तक की पिचकारी बाजार में उपलब्ध है

 

-भक्त प्रहलाद की याद में किया जाता है होलिका दहन

सर्वविदित है कि भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी तथा भगवान शक्ति से उनका ध्यान हटाने के लिए हिरण्यकश्यप ने उन्हें नाना प्रकार के जघन्य कष्ट दिए थे। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी होलिका भक्त प्रहलाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई थी, परंतु यह आग भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं कर पायी और इस आग में होलिका स्वयं ही जलकर भस्म हो गई क्योंकि भगवान कृपा से वह वस्त्र तेज हवा चलने से होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। होलिका के भस्म होते ही भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकलकर गोधूलि बेला यानी सुबह व शाम के समय का संधिकाल में दरवाजे की चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपने नुकीले नाखूनों से उसका पेट फाड़कर उसे मार डालते हैं।

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