बालोद- सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर यानी आज 22 अगस्त रविवार को जिले में रक्षाबंधन का त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। रक्षाबंधन भाई और बहन के बीच स्नेह का त्योहार है। जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। राखी बांधने का शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार सुबह 6.15 बजे से लेकर 10.34 बजे शोभन योग रहेगा। घनिष्ठा योग शाम 7.40 तक रहेगा। इस योग में राखी बांधना उत्तम माना गया है। ज्योतिषाचार्य प्रेम शुक्ला ने बताया कि रक्षाबंधन पर शुभ समय सुबह 5.50 से शाम 6.03 बजे तक रहेगा। दोपहर में 1.44 बजे से 4.23 बजे तक राखी बांधने के लिए उत्तम समय है। वहीं, पूर्णिमा तिथि 21 अगस्त को शाम 7 बजे से शुरू होकर 22 अगस्त शाम 5.31 बजे समाप्त होगी।
जेल में नही होगा रक्षाबंधन का आयोजन
जिले में कोरोना संक्रमण की वजह से जेल में होने वाले रक्षाबंधन के आयोजन को लगातार दूसरे वर्ष भी रद्द कर दिया गया है। इस बार बहनें डाक के जरिए जेल में बंद अपने-अपने भाइयों को राखी भेजेंगी। जेल में पहुंचने वाली हर राखी को सैनिटाइज करने के बाद भाई के पास पहुंचाया जाएगा।वही बहन जेल में पहुचकर लिफाफे में अपने भाइयों के लिए राखी जेल पुलिस को दे सकते है।22 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार मनेगा। हर साल जेल में भाइयों को राखी बांधने के लिए भारी तादाद में बहनें पहुंचती थीं। ऐेसे में जेल के बाहर मेला सा लगा रहता था। एक सप्ताह पहले से ही जेल के अंदर व बाहर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए तैयारियां होती थीं। लेकिन, इस बार कोरोना के के चलते इस वर्ष भी जेल में मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार पूरी तरह फीका रहेगा। जेल में होने वाली मुलाकात पर रोक भी है। ऐसे में मुलाकात के साथ ही त्योहार पर बहन के मिलने पर भी रोक है। भले ही बहन राखी न बांध पाए, लेकिन भाइयों तक राखी पहुंचाने का इंतजाम जेल प्रशासन ने किया है। उप जेल के प्रभारी जेलर मतलाम ने बताया कि कोरोना के चलते दूसरे वर्ष भी जेल में रक्षाबंधन का कोई आयोजन नही होगा।बहने अपने भाइयों के लिए डाक व जेल में आकर लिफाफे में राखी दे सकते है।
रक्षाबंधन पूजन विधि
सबसे पहले रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर पूजाघर में भगवान की पूजा और आरती करें। पूजा के बाद रक्षाबंधन की थाली को तैयार करें जिसमें राखी, चंदन, चावल, मिठाई, दीया और फूल रखें। थाली को सजाने के बाद अपने इष्टदेव को राखी बांधें। फिर सभी भगवान की आरती और भोग लगाकर आरती करें। बाद में भाई को पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठाकर दाहिने हाथ की कलाई में रक्षा सूत्र बांधे और आरती उतारें। अंत में मिठाई खिलाएं।
पुराणों में रक्षाबंधन
पुराणों के अनुसार एक समय की बात है एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हो गया था। यह युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा। इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को परस्त कर दिया था। असुरों ने इंद्र को हराकर तीनों लोकों में अपनी विजय पताका फहरा दिया था। असुरों से हराने के बाद समस्त देवी-देवता सलाह मांगने के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति ने मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा संकल्प विधान करने की सलाह दी। देवगुरु के निर्देशानुसार सभी देवताओं नें रक्षा विधान का आयोजन किया। यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर आरंभ किया गया। रक्षा विधान में सभी देवताओं ने मिलकर एक रक्षा कवच को सिद्ध कर इंद्र की पत्नी इंद्राणी को सौंप दिया और इसे देवराज इंद्र के दाहिने हाथ में बांधने के लिए कहा। इसके बाद इंद्राणी ने देवराज की कलाई में रक्षा कवच सूत्र को बांध दिया। इसकी ताकत से इंद्र ने पुन: असुरों से युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया और अपना खोया हुआ राजपाठ वापस हासिल कर लिया। तभी से हर वर्ष सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।