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बालोद जिले में पारंपरिक ढंग से मनाया गया अक्षय तृतीया का पर्व तो शाम को भगवान परशुराम का निकाला गया शोभायात्रा

बालोद- जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में शुक्रवार को अक्षय ( अक्ति) का त्यौहार पारंपरिक ढंग से मनाया गया। छोटे छोटे बालिकाओ ने धर में ही गुड्डे और गुड़ियाें की शादी रचाईं। ग्रामीणों ने अपने ठाकुरदेव की विशेष पूजा अर्चना कर अच्छी फसल होने की कामना की गई। पर्व की तैयारी ग्रामीण पहले से ही कर लिए थे। ठाकुरदेव की पूजा के लिए पलाश या महुआ के पत्ते से बने दोना सोमवार को घर में लाकर पहले से ही रखा गया था।कई लोगों ने सुबह ही दोना पत्तल की व्यवस्था की। इसी दोने में ठाकुर देव को भोग समर्पित किया गया। ठाकुरदेव की पूजा अर्चना के बाद किसान अपने खेतों में कुछ धान बीज की बोनी कर खरीब फसल की शुरुवात की गई। किसानो ने बताया कि मान्यता है कि खेतों में अक्ती के दिन बोए बीज में खुद ठाकुरदेव स्थापित रहते है। इससे अच्छी फसल होती है। साथ ही इस दिन मान्यता है कि गांव के ठाकुर देव की जब तक पूजा नहीं की जाती तब तक गांव के कोई भी व्यक्ति जल स्त्रोत से पानी नहीं ले सकता। चाहें जल स्त्रोत हैंडपंप, तालाब, कुआं या निजी व सरकारी मोटर पंप ही क्यों न हो।

ठाकुरदेव की पूजा के बाद ही घरों में पीने का पानी भरा गया

परंपरा को निभाते हुए गांवों में पूजा के बाद ही पानी भरना शुरू हुआ। मान्यता है कि यदि ठाकुर देव की पूजा के पहले ही पानी भरा गया तो गांव के देवी देवता रूष्ट हो जाएंगे और गांव में अशांति व अनिष्ट का वातावरण निर्मित होगा। कुछ बड़े त्यौहारों के दिन भी ग्रामीण इस नियम का पालन करते है। ग्रामीणों को सचेत करने के लिए एक दिन पूर्व ही शाम या रात को गांव में मुनादी की जाती है कि कृषि, मिट्टी व पानी से संबंधित कार्य बंद रहेंगे। ठाकुर देव की पूजा के बाद फिर से मुनादी कराई जाती है कि अब ग्रामीण पानी भर सकते है। अक्ती पर गांवो में ठाकुरदेव की पूजा के बाद ही पानी भरने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

गांवों में अक्ती के दिन गुड्डा गुुड्डी के विवाह का रश्म भी किया जाता है।

अक्षय तृतीया के पर्व पर जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलो में गुड्डा गुड्डी की विवाह रचाया,सुबह से ही बच्चे अपने गुड्डा गुड्डी की शादी के लिए छग के परम्परा अनुसार चुलमाटी लेने के लिए शीतला मंदिर की मिटटी लेने गाजे बाजे के साथ पहुचे थे।इस दौरान चुलमाटी की मिटटी से मण्डप को सजाया गया जिसके बाद अलग अलग मण्डपो में गुड्डा गुड्डी को तेल हल्दी चढ़ाया गया वहीँ दोपहर में छोटे छोटे बच्चों द्वारा मैन नाचा कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे बच्चों ने गाजे बाजे की धुन पर जमकर थिरक रहे थे जिसे देखने के लिए लोग उपस्थित होकर बच्चों का उत्साह वर्धन किया।छग की परम्परानुसार रात को गुड्डा गुड्डी का टिकावन रखा गया जिसमे ग्रामीण महिलाए व् पुरषो ने गुड्डा गुड्डी को टीका लगाकर पैसे भेट किए वही बच्चों द्वारा टिकावन में आय लोगो के लिए नास्ते की व्यवस्था भी की गई थी इस तरह से गुड्डा गुड्डी का विवाह रचाया गया।

पितरों को आज से देते हैं भोजन

आज के ही दिन से अपने पूर्वजों को पानी देने का काम शुरू हो जाता है। गांवों में नदी, तालाबों में जाकर घर के बड़े बुजुर्गों ने अपने पूर्वजों के लिए पलाश के पत्ते में उड़द दाल व चांवल डालकर घास में रख पानी दिया ताकि पूर्वजों को शांति मिल सके। अक्ती पर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि सहित अन्य कार्य बंद रहें। महिलाओं ने आंगन की लिपाई-पोताई भी की थी। घरों में पकवान बनें। जिसे परिवार के सदस्यों ने घर में पूजा-अर्चना के बाद ग्रहण किया।

भोग में चढ़ा धान मांगी अच्छी बारिश

सुबह 8 बजे से ही मेड़की, बघमरा, ओरमा, जुंगेरा, घुमका, पाररास, तरौद, कोहंगाटोला, झलमला, सिवनी, सहित अन्य गांवों में ठाकुर देव प्रतिमा स्थल पर ग्रामीणों ने पूजा अर्चना की। गांवों के सभी किसान अपने घर से पलाश के पत्तों से बने दोने में धान लेकर पहुंचे। जहां गांव के बैगा ने विधि विधान से मंत्रोच्चारण के साथ दो-तीन घंटे तक पूजा अर्चना की। इसके बाद किसानों ने दोने में लाए धान को ठाकुर देव को अर्पित किया। किसानों ने अच्छी बारिश व फसल की कामना की। इसके बाद से ही किसान नई फसल की तैयारी शुरू करते है।

ब्राह्मण समाज ने की भगवान परशुराम की पूजा

अक्षय तृतीया के इस पर्व को पूरे देश में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है तो वही बालोद जिले में ब्राह्मण समाज के लोगो ने भगवान परशुराम के मंदिर में।पूजा अर्चना किए तथा शाम को भगवान परशुराम का शोभायात्रा निकालकर परशुराम जयंती के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाए

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