बालोद- संयुक्त जिला कार्यालय परिसर बालोद से महज कुछ मीटर की दूरी पर स्थित तांदुला ईको टूरिज्म पार्क अपने विकास के बदले हो रहे विनाश पर आंसू बहाने को मजबूर है। जिस संस्था को इसे सवारने की जिम्मेदारी दी गई है, वही इसे बर्बाद करने पर तुला हुआ है। इसका ताजा उदाहरण बुधवार को पार्क में देखने को मिला। पर्यटकों के रहने के लिए बनाए गए क्वाटेज, रेस्टोरेंट और निर्माणाधीन अन्य क्वाटेज से निकलने वाले कूड़े कचरे, सीमेंट की बोरियों, प्लास्टिक पानी बोतल, ग्लास, पेपर प्लेट सहित अन्य रासायनिक युक्त सामानों को जलाया जा रहा है। वो भी बिना किसी डर के। क्योंकि इसे देखने वाला कोई नहीं है। इस पूरे पार्क को भिलाई की एक संस्था को लीज पर दिया गया। करोड़ों रुपए खर्च कर बनाएं गए इस पार्क की खुबसूरती को निहारने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुंच रहे है। संस्था भी यहां बोटिंग, पार्किंग, कमरों और रेस्टोरेंट से अच्छी आमदनी कमा रही है। वहीं नियम का पालन करने में घोर लापरवाही बरती जा रही है। क्षेत्र की सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। परिसर में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। निर्माण और देखरेख में लगे कर्मचारी कचरा डुबान क्षेत्र में फेंक कर आग लगा रहे है। उठने वाले धुएं से पर्यटक हलाकान है। इसी प्रकार पार्किंग के नाम पर 20 रूपये का शुल्क मनमाने तरीके से वसूला जा रहा है। 2 व्हीलर का शुल्क 20 रुपये है। पार्किंग पर्ची में ठेका अनुबंध से संबन्धित, शुल्क की जानकारी को लेकर कोई बोर्ड भी नहीं लगाया गया है।
तीन स्थानों पर लगाई गई आग-
बांध के किनारे तीन स्थानों पर यह आग लगाई गई है। पास में बांध को निहारने के लिए टावर बनाया गया है। लेकिन आग से निकलने वाले धुआं से उस तरफ लोग नहीं जा पाए, कई तो टावर के पास पहुंचकर वापस आ गए।
जिला प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान-
पर्यटन को बढ़ावा देने जिला प्रशासन ने अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनाए गए इस डैम के कैचमेंट क्षेत्र में इस पार्क को विकसित किया है। रोजाना कई अधिकारी यहा घूमने के लिए आते है। इसके बाद भी यह नजारा अधिकारी नहीं देख पा रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि जितने क्षेत्र में रिसॉर्ट का निर्माण किया गया है, उसके आगे और मनमानी तरीके से रिसोर्ट के संचालक द्वारा आगे और डेवलपमेंट किया जा रहा है।
पर्यटकों ने की आलोचना-
ईको पार्क की खुबसूरती को निहारने पहुंचे पर्यटक हर्ष साहू, रवि कुमार, देव साहू, सरोज आदि ने बताया कि जब यह नहीं बना था। तब भी यहां आते थे। पार्क बनने के बाद पहली बार इस जगह को देखने पहुंचे है। डैम के पानी के पास आग जलाना वो भी खुले में यह काफी गलत है। इससे पर्यावरण के साथ ही आने वाले दिनों में डैम को भी नुकसान होगा। क्योंकि वर्षा के दिनों में पानी का लेबल यहां तक पहुंचेगा तो ये अवशेष पानी को दूषित कर देंगे।
यह है नियम-
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, एनजीटी) की स्थापना 18 अक्तूबर 2010 को एनजीटी अधिनियम, 2010 के तहत पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, दुष्प्रभावित व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुडे़ हुए मामलों के प्रभावशाली और त्वरित निपटारे के लिये की गई थी। लेकिन इस इको पार्क में खुलेआम एनजीटी के नियमो की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।