आस्था का सबसे बड़ा पर्व कुंवार नवरात्रि आज से प्रारंभ हो चुका है ….माता के मंदिरों में आज से ज्योति कलश की स्थापना के साथ अगले 9 दिनो तक मंदिरों में भक्तो का तांता लगा रहेगा…वही बालोद जिले के आस्था का सबसे बड़ा केंद्र ग्राम झलमला में स्तिथ माँ गंगा मइया मंदिर में आज नवरात्र के पहले दिन भक्तों की भारी भीड़ नज़र आई….
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..बालोद जिले के गंगा मैया मंदिर में न केवल बालोद जिले से बल्कि प्रदेश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां पहुचे हैं…. इस बार गंगा मइया मंदिर में 900 मनोकामना ज्योतकलश की स्थापना की गई है….. वृंदावन से 11 पंडितों द्वारा आज दोपहर 12 बजे शक्तिवाचन के माध्यम से विधिवत पूजा अर्चना कर ज्योत प्रज्जवलित की गई…… नवरात्र के 9 दिन यहां अलग अलग तरह के धार्मिक आयोजन भी होंगे…. जिसमे संगीतमय झांकीयुक्त रामधुनी, माता सेवा गायन, नाचा एवं गम्मत, विशेष प्रस्तुति में महिषासुर वध कार्यक्रम आयोजित होंगे…. सभी कार्यक्रमो में छत्तीसगढ़ संस्कृति की झलक देखनी मिलेगी….. प्रतिदिन सुबह 7 बजे शत चंडी यज्ञ-दुर्गा सप्तशती सस्वर पाठ भी होगा….. माता सेवा भी प्रतिदिन चलेगा….. यहां मंदिर के बगल परिसर में विशाल मेला भी लगाया गया है…. जिसमे तमाम तरह के झूले, बच्चो के मनोरंजम के साधन सहित कई दुकानो के स्टॉल लगाए गए है….. 22 अक्टूबर महाष्टमी को कन्या भोज के दौरान स्टील का बड़ा बर्तन उन्हें भेंट स्वरूप दिया जाएगा…… वही इस नवरात्र से दाल भात सेंटर की व्यवस्था भी बदल चुकी हैं….. इस नवरात्र से अब यहां आने वाले श्रद्धालु दाल भात का आनंद नीचे बैठकर नही बल्कि, हाल के अंदर टेबल कुर्सी में बैठकर भोजन करेंगे….. टोकन सिस्टम के जरिये काउंटर से ही सेल्फ सर्विस की सुविधा रखी गई है….. हॉल में लाइट, पंखे और कूलर भी लगाए गए हैं….. इस नवरात्र अस्थाई टेबल कुर्सी की व्यवस्था की जा रही है, तो वही आने वाले वर्ष से बैठने के लिए पक्के स्थाई व्यवस्था होगी….. वही सब्जी पूरी के लिए भी एक एक्स्ट्रा शेड का निर्माण किया गया हैं….. दाल भात और सब्जी 20 रुपये और पूरी सब्जी 5 रुपये में सेवा शुल्क के रूप में लिए जाएंगे….. मेले में आने वाले दुकानदारों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए स्थाई रूप से शेड का निर्माण किया गया साथ ही दुकान या स्टॉल लगाने के लिए पक्के चबूतरे का भी निर्माण किया गया हैं.
आपको बतादे बालोद जिले का प्रसिद्ध यह गंगा मइया मंदिर को लेकर कई किवंदतियां हैं….. किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवंट मछली पकडऩे के लिए तांदुला नदी में गया….. लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई। लेकिन केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से नदी में डाल दिया….. इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवंट जाल लेकर घर चला गया……केवंट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया….. इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं….. मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ….. स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा नदी पहुंचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी…… प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मइया के नाम से जानी जाने लगी.।