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पर्यावरण सुरक्षा ताक पर ..खुलेआम जलाई जा रही पैराली बालोद जिले के कृषि विभाग भी ऐसे मामलों को कर रहा नजरअंदाज

बालोद- इसी माह पूरे देश मे पर्यावरण दिवस  मनाकर पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जागरूकता अभियान वृक्षारोपण किया गया लेकिन यह अभियान सिर्फ एक दिन चलने के बाद सरकारी अमला भी इसे भूल गए और आज जिले के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में खुलेआम पैराली जलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है । इस ओर न प्रशासन का ध्यान न इस पैराली को जलाने वालो का ..दरअसल धान कटाई के बाद रबी फसल लगाने के लिए बालोद जिले के किसानों ने खेतों में बचे अवशेष रूपी नरई व पैरा को जला रहे है। खेतों में फसलों के अवशेष को आग के हवाले किया जा रहा है। इससे किसान अनजाने में सही लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं।खेतों में पराली जलाने का सिलसिला नहीं थम रहा है। सब कुछ जानते हुए भी किसान खुलेआम पराली जलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ अपने खेत की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट कर रहे हैं। स्थानीय अधिकारी इसे रोक पाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। इससे उठते धुआं के कारण पर्यावरण बिगड़ रहा है। पराली के साथ किसान अपनी परिवार की खुशहाली को जला रहे हैं। इससे धरती में छुपे मित्र किट मर रहे हैं। जिससे आने वाले समय में यह धरती बंजर हो सकती है।

पडकीभाट में मुख्य मार्ग में स्थित खेतों में आग की लपटें से आस पास इलाके में धुंआ ही धुआं

जानकारी के अनुसार जिले के अंतर्गत ऐसे गांवों के किसान ने रबी फसल ज्यादा रूप में लेते है वे उन खेतों के फसल कटाई के बाद बचे अवशेष को जलाकर खेत की सफाई करने में लगे है। बालोद ब्लाक के ग्राम पडकीभाट में मुख्य मार्ग में स्थित खेतों में शनिवार को आग की लपटें के साथ ही आस पास इलाके में धुंआ ही धुंआ ही दिख रहा हैं।सड़क में चलने वाले राहगीरों को धुंए से परेशानी का सामना करना पड़ा। इससे खेतीहर जमीन पर कड़ापन होने के साथ उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। कृषि विशेषज्ञों की माने तो खेत में पैरा, नरई के अवशेष को जलाने से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटास व सल्फर जैसे जरुरी पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते है। इस वजह से धान फसल की उत्पादन में लगातार गिरावट देखी जा रही है। इसके बाद भी न किसानों को कोई फर्क पड़ रहा है और न ही प्रशासन कोई एतिहायत कदम उठा रही है। हालांकि कुछे गांव के किसान अभी भी मवेशियों के लिए चारा के लिए पैरा ढुलाई कर अवशेष नहीं जला रहे है, लेकिन अगल बगल के खेतों में सिर्फ जलने के निशान दिख रहे है। फिलहाल किसान की प्रकृति से खिलवाड़ कर खेतों में आग लगाने का काम कर रहे हैं।

मिट्टी को होता है नुकसान

किसानों द्वारा खेत की नराई जलाने का सिलसिला नहीं थम रहा है। इसके बाद भी प्रशासन इस तरफ अनदेखी कर रहा है। जबकि खेतों की नरवाई जलाने से खेतों की उर्वरक शक्ति नष्ट हो जाती है। इसके बाद भी अन्नदाता किसान भाई अपने खेतों में लगाई धान की फसल की नरवाई जलाने से बाज नहीं आ रहे। कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि नरवाई जलाने से भूमि की नमी तथा उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। इससे खेती की पैदावार कम हो जाती है। इससे कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ती है।

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