*बालोद*- कहते हैं कि इस दुनिया में देह दान से बड़ा कोई दान नहीं है ग्राम -गुजरा, ब्लॉक- डौंडी, जिला- बालोद की रहने वाली बेटी जो की एक बाहुल्या आदिवासी क्षेत्र से हैं जो की कई सालों से शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए काम कर रही है, इनके काम को देखकर कई अवार्ड से बेटी को सम्मानित भी किया गया है, राज्य , जिले और आदिवासी समाज के लिए एक जीती जागती मिसाल है बेटी ने बताया कि पेड़ों से मिलता हैं प्रेरणा जिस तरह एक पेड़ हमें कई तरह के फ़ायदे दिलाते हैं और काट जानें के बाद भी वो बहुत सारी चीज़ें उपलब्ध करती हैं वैसे हम इन्सान हैं और हम मर जानें के बाद भी समाज के लिए काम आए गए , बेटी ने शासकीय मेडिकल कॉलेज उत्तर बस्तर कांकेर को देह दान किया है इनके माता-पिता बेटी के इस फैसले से बहुत गर्व महसूस कर रहे हैं क्योंकि देह मेडिकल कॉलेज की स्टूडेंट के लिए साइलेंस टीचर की तरह होती है, वो आपकी शारीरिक अंगों पर प्रैक्टिकल कर दूसरों को जीवन देना सीखते हैं , और एक मृत शरीर कई लोगों की जान बचा सकती नया जीवनदान दे सकती है, किसी भी मेडिकल कॉलेज को 1 साल में कम से कम 20 बॉडी की आवश्यकता होती है इस लिए बेटी ने फैसला किया कि जब उनकी मृत्यु हो जाएगी तो उनके रिश्तेदार ,परिजन ,मेडिकल कॉलेज को शव को सौंपा जाए जिनसे मेडिकल के छात्रों को शारीरिक संरचना के अध्ययन के लिए और विज्ञान के क्षेत्र रिसर्च, चिकित्साओं के क्षेत्र, को एक बेहतरीन सफलता मिल पाए और शव का उपयोग अनुसंसाधन चिकित्सकों द्वारा नई जीवन रक्षक सर्जिकल प्रक्रियाओं के विकास में भी किया जाए ।
भारत दूसरे स्थान पर है जहाँ दुनिया की सबसे अधिक आबादी रहती है फिर भी चिकित्सा और विज्ञान के रिसर्च के लिए शव नहीं मिला पता हैं जिससे मेडिकल की पढ़ाई अच्छे से नहीं हो पाता है इसलिए बच्चे यूक्रेन जैसे शहरों में पढ़ना पसंद करते हैं , क्योंकि भारत में मेडिकल की पढ़ाई का फीस भी बहुत ही ज्यादा है विदेशों के मुताबिक जिनसे बच्चे विदेशों में पढ़ने जाते हैं उसके बाद वहां से वापस लौट के नहीं आते हैं भारत में अभी तक करीब 1 साल में एक लाख से ज्यादा बच्चे विदेशों में पढ़ने जाते हैं । जिनसे हमें अच्छे डॉक्टर भी नहीं मिल पाता है। जिस कारण से भारत विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में आज भी पीछे हैं। इसलिए शासन प्रशासन भी देह दान के लिए कई तरह के जागरूकता अभियान चलाते हैं ।