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*सनातन के सबसे बड़े लोकपर्व दीपावली की दिखी धूम…लेकिन आज सूर्यग्रहण के चलते त्यौहार के इन कार्यक्रमों में हुआ बदलाव…पढ़े पूरी खबर*

बालोद-दीपावली पर बालोद शहर सहित गांवों में उत्साह का माहौल रहा। सोमवार को लक्ष्मी पूजा के बाद रातभर गौरी गौरा बनाने का सिलसिला चला।सूर्य ग्रहण हीने के कारण बुधवार की रात बारात के रूप में शोभायात्रा निकाली गई। सुबह से देर शाम तक गौरी-गौरा पूजा, की रस्म निभाने का सिलसिला चला। रात भर गौरी-गौरा विवाह के जश्न में आदिवासी समाज के लोग डूबे रहे। बुधवार की सुबह कलश यात्रा निकालकर पास के तालाब में गौरी-गौरा की मूर्ति का विसर्जन किया जाएगा। धन की माता लक्ष्मी की पूजा के पश्चात विधि विधान से ग्रामीणों के साथ गौरा गौरी शिव पार्वती जगार करते हैं। इस जगह में महिलाएं एक स्वर में गीत गाते हैं और ढोलक, डमरु, दफड़ा, गुदुम जैसे वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य कर पूरे इलाके में भक्ति का संचार करते हैं। दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के बाद गौरा गौरी की मूर्ति बनाई गई । गौरा गौरी को पूर्ण रूप से तैयार करने के बाद शादी की रस्म पूरी की गई। रात में ही बाजे गाजे व आतिशबाजी के साथ बारात निकाली निकाली गई एवं बुधवार की प्रात: शोभयात्रा निकाल कर विसर्जन किया जाएगा।

गांवों में गौरा गौरी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया

भगवान शिवजी एवं माता पार्वती की पूजा अर्चना मानव जाति सृष्टि प्रारंभ से ही विभिन्न रूपों का विभिन्न तरीकों से करते आ रहे है। इस त्यौहार को शहर के मरारपारा पांडेपारा, कुंदरूपारा, नयापारा, संजयनगर, शिकारीपारा सहित मेड़की, बघमरा, ओरमा, खरथुली, भोथली, जगन्नाथपुर, सांकरा सहित अन्य गांवों में गौरी-गौरा की कलश यात्रा निकाली गई। कुंवारी लड़कियां सिर पर कलश रखकर मोहल्ले-गांवों का भ्रमण किया, जो आकर्षण का केंद्र रहा। दीपावली की रात गौरी-गौरा की बारात शहर सहित गांवों में निकाली गई। पंरपरा अनुसार आदिवासी समाज के लोगों ने तालाब के समीप की कुवांरी मिट्टी से गौरी-गौरा की मूर्तियां बनाई। इसके बाद गाजे-बाजे के साथ गौरा-गौरी की बारात निकाली। गांव की महिलाओं ने पारंपरिक गौरी-गौरा गीत गाकर पूरे माहौल को भक्तिमय कर दिया।

लक्ष्मी की पूजा कर रात में परघाये करसा, पूजे गौरा गौरी

दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के बाद गौरा-गौरी की मूर्ति बनाई गई। इसे कुंवारी लड़कियां सिर पर कलश सहित रखकर मोहल्ले गांव का भ्रमण किया गया । टोकरीनुमा कलश में दूध में उबाले गए चावल के आटा से बना प्रसाद रखा गया। जिसे दूधफरा कहा जाता है। यही पकवान गौरा-गौरी को भोग लगाया गया। जिसे दूसरे दिन सभी लोग ग्रहण किए। सबसे खास बात यह है कि लक्ष्मी पूजा के दिन गांव के तलाब से मिट्टी लाया जाता हैं, उक्त मिट्टी से अलग अलग स्थानों में गौरा गौरी की मूर्ति बनाई गई, जिसके बाद विवाह किया गया। गौरा की और से ग्रामीण गौवरी के धर बरात लेकर आए, वहीं गौवरी के तरफ से ग्रामीण बरात का स्वागत करते हैं जिसके बाद शादी की पूरी रस्में इसी रात में पूरी की गई और गौवरा गौवरी को गौवरा चौरा में रखा गया। जिसका गोवर्धन पूजा के दिन सुबह विधि विधान के साथ तलाब में विसर्जित किया जाएगा। यह छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी जनजातियों गोड़ जाति के लिए सबसे प्रमुख है।


सूर्य ग्रहण के कारण बुधवार को गोवर्धन पूजा

सोमवार को लक्ष्मी पूजन विधि विधान से किया गया। मंगलवार को सूर्यग्रहण के कारण बुधवार को गोवर्धन पूजा की जाएगी। गायों की पूजा कर उन्हें खिचड़ी खिलाई जाएगी। कुम्हड़ा, कोचई आदि की सब्जी सहित पकवानों का भोग लगाया जाएगा। उसी खिचड़ी से ग्रामीण प्रसाद ग्रहण कर सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। देर शाम को घर में गोबर से बनाए तालाब में एक में पानी और दूसरे में दूध भर कर गौरी-गणेश की पूजा कर मवेशियों के पैर से कुचलवाएंगे। तीसरे दिन भाईदूज पर बहनें भाइयों की पूजा करेंगे। कई गांवों में गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन मातर उत्सव भी मनाया जाएगा।

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