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होली के पहले सजा बाजार ..रंग-बिरंगे रंग व बच्चों के मनमोहक पिचकारियां से बाजार दिखने लगा मनमोहक

बालोद- होली त्योहार के लिए बाजार पूरी तरह सज चुका है। पर्व के मद्देनजर स्थानीय बाजार में रंग-बिरंगी पिचकारी तथा उपयोगी दूसरे साजो सामान की कई दुकानें सज गई हैं।होली त्योहार को लेकर बाजार में रंग-बिरंगे रंग व बच्चों के मनमोहक पिचकारियां पहुंच चुकी हैं। समूचा बाजार ऐसी दुकानों से सज धजकर तैयार हो चुका है। जिस पर कम ही लोग खरीदारी के लिए पहुच रहे है। हालांकि इस वर्ष चाइनीज पिचकारियों की चमक कुछ फीकी दिखाई दे रही है। अभी गन पिचकारी, जानवरों की आकृति पिचकारियों की बिक्री अधिक है। रंगों में भी गुलाल, पानी में घुलने वाले रंगों की भी अपनी अलग छटा दिखाई दे रही है।

इस बार 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को होली का त्यौहार

इस बार 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को होली है। बता दे पिछले दो साल तक कोरोना वायरस के कारण होली का त्यौहार फीका था लेकिन इस बार जिले में कोरोना के केस नही होने से लोगो ने राहत की सांस ली हैं। और इस बार बालोद जिले में होली पर्व को लेकर लोगों में अब उत्साह दिखने लगा है। दुकानदारों ने बताया कि लोगों ने धीमी गति से पूर्व की खरीदारी शुरू कर दी है। हमेशा की तरह इस बार भी होली का बाजार बच्चों के लिए खास साजो सामान लेकर आया है। गुलाल 60 से 150 प्रति किलो बिक रही है। होली में रंग गुलाल के अलावा लोक कलाकारों के फाग गीत की सीडी और नगाड़े की भी बिक्री हो रही हैं। दूसरी तरफ से बच्चे होलिका दहन की तैयारी में जुटे हुए हैं।

10 से 200 तक बिक रही है पिचकारी

दुकान में तरह-तरह की पिचकारी, मुखौटे स्प्रे उपलब्ध हैं। बच्चों के लिए कृष, मिकी माउस, शेर, लोमड़ी, खरगोश, शक्तिमान सहित विभिन्ना प्रकार के मुखौटे 10 से 50 रुपये की कीमत पर उपलब्ध है। पिचकारी में बोतल पिचकारी, सानिया वाली पिचकारी 10 से 200 तक उपलब्ध है। होली के रंगों से बाल को बचाने के लिए मुस्कुरा टूटी चटाई के दूह्ला पगड़ी 20 से 50 में उपलब्ध है।

अब कम सुनाई देती है नगाड़े की थाप

आधुनिकता के इस दौर में परंपराएं काफी तेजी से दम तोड़ती नजर आ रही हैं। फाल्गुन मास में गूंजनी वाली फाग और नगाड़ों की थाप तेजी से खत्म होती जा रही है। रंगों के पर्व होली में महज कुछ ही दिन का समय शेष रह गया है, लेकिन माहौल में अब तक फाग का सुरूर नहीं चढ़ पाया है। देर रात तक गूंजने वाली नगाड़ों की थाप भी अब तक सुनाई नहीं दी है। बसंतोत्सव की खुमारी महंगाई के चलते धीरे-धीरे दम तोड़ती नजर आ रही है। शहर से लगे ग्रामीण अंचलों में होली के सप्ताह भर पूर्व ही फाग और नगाड़ों की थाप शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है। फिजां में न तो फाग और न ही नगाड़ों की गूंज है। शहर में विभिन्ना इलाकों से प्रतिवर्ष नगाड़ा लेकर विक्रय के लिए पहुंचने वाले व्यापारी शहर के चौक-चौराहों में दुकान लगाकर बैठे हैं। लेकिन उन्हें नगाड़ों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। व्यापारियों ने बताया कि बीते चार-पांच साल से नगाड़ों की डिमांड कम होती जा रही है। पुश्तैनी पेशा होने और दूसरा कोई काम-धंधा नहीं होने के कारण उनकी भी मजबूरी है कि वे इसी व्यवसाय से जुड़े रहें। लेकिन अब उनका भी गुजारा होना मुश्किल होता जा रहा है। बीते दो सालों में तो केवल लागत ही निकल पाने की बात स्वीकार करते हुए एक व्यवसायी ने बताया कि होली पर्व में अच्छी बिक्री की उम्मीद लेकर वे दर्जनों नगाड़ा लेकर पहुंचते हैं, लेकिन उस हिसाब से अब ग्राहकी नहीं होती। पहले होली के पखवाड़े भर पूर्व से बिक्री शुरू हो जाती थी, लेकिन अब नगाड़ा व्यवसाय केवल एक दिन का रह गया है। लोग शौक के तौर पर नगाड़ा खरीदने केवल होलिका दहन के दिन पहुंचते हैं। एक दिन में जितनी बिक्री होती है, उससे लागत निकलना मुश्किल होता जा रहा है।

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