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*कही पशुओं को खिलाया औषधि,तो कही घरों में नीम डालियां लगाकर परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा हरेली का त्यौहार…इसके अलावा इस त्योहार का और क्या मान्यता…पढ़े इस खबर में*

बालोद- गुरहा (गुड़) चीला के साथ गुलगुला भजिया और ठेठरी-खुरमी का स्वाद हरेली के तिहार को दोगुना कर दिया। रविवार को हरेली (हरियाली अमावस्या) तिहार पर छत्तीसगढ़ के किसानों के घरों में कृषि औजारों की पूजा हुई और बैलों को औषधि खिलाई गई। गांव-देहात के साथ शहर के कई घरों में भी हरेली तिहार मनाया गया, बता दे कि इस वर्ष कोरोना वायरस के चलते ग्रामीण अंचलों में कोई भी प्रतियोगिता का आयोजन नही किया जा रहा हैं, वही पिछले वर्ष राज्य शासन द्वारा प्रत्येक गावो में विभिन खेल कूद का आयोजन किया गया था,लेकिन इस बार राज्य शासन ने कोरोना वायरस के चलते प्रतियोगिता पर अंकुश लगा दिया गया हैं,
सुबह से गांव में बच्चे गेड़ी चढऩे की तैयारी में जुट गए हैं। इधर घर-घर नीम की टहनी लगाई गई। कहा जाता है कि हरेली तिहार से पहले कृषि कार्य पूरा हो जाता है। यानी बोआई, बियासी के बाद किसान और पशुधन दोनों ही आराम करते हैं। पर अब बदलते मौसम के कारण हालांकि खेती का काम पूरा नहीं हुआ है, लेकिन फिर भी किसान इस परंपरा को निभाने अपने औजारों की पूजा करेंगे।

पशुओं को खिलाया औषधि

हरेली के दिन बैल और गाय की सेहत की चिंता भी किसान करते हैं। आटे में दसमूल और बागगोंदली(एक तरह की जड़ीबूटी) को मिलाकर खिलाते हैं ताकि उन्हें कोई बीमारी ना हो। बारिश के दिनों में पशुओं को कई तरह की बीमारी हो जाती है, यह औषधि इन बीमारियों को होने से बचाती है।किसानों ने बताया कि हरेली त्योहार से किसानों और पशुधन के आराम के दिन शुरू होते हैं। पुराने जमाने में हरेली से पहले बोआई, बियासी का काम पूरा हो जाता था। फसल के पकने तक पशुओं को भी आराम मिलता था। केवल खेतों में निगरानी का काम ही करते थे।हरेली के दिन किसान अपने हल सहित कृषि औजार, रापा- गैंती, कुदाली, टंगिया, जैसे कई औजार जो कृषि कार्य में उपयोग होते हैं उनकी पूजा की गई। इस अवसर पर हल पर गुरहा चीला जो चावल के आटे में गुड़ डालकर तैयार किया गया, उसका भोग लगाया। साथ ही गुलगुला भजिया भी खास तौर पर बनाया जाता है।


चौखट पर लगाई नीम की टहनी

हरेली के दिन घर की चौखट पर कील ठोकने और नीम की टहनी लगाने की परंपरा भी है। गांवों में यह रस्म राउत निभाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में कुछ अनिष्ट नहीं होता। हालांकि नीम की टहनी लगाने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह भी माना जाता है कि नीम के होने से बारिश में पनपने वाले मच्छर और अन्य कीट दरवाजे के अंदर नहीं जाते।

कम बारिश ने बढ़ाई मुसीबत

इस बार भी जिले में मानसून की दगाबाजी से इस बार हरेली पर किसानों और बैलों को आराम नहीं मिलेगा। जिले के कई हिस्सों में बियासी का काम बाकी है। जब तक अच्छी बरसात नहीं होगी और खेतों में पानी नहीं भरेगा तब तक बियासी का काम नहीं हो पाएगा। हरेली के बाद भी किसानों को खेत में जाकर काम करना होगा। रविवार को हरेली के मौके पर वे केवल प्रतिकात्मक पूजा हो पाई, क्योंकि कृषि औजारों का उपयोग तो उन्हें अभी करना ही होगा।

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