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संविदा नियुक्ति समाप्ति के बाद भी मलाईदार पद पर काबिज अधिकारी..कुर्सी के मोह के आगे छग शासन के नियम कायदे भी हुए दरकिनार..बालोद जिले के वन विभाग का पूरा मामला

 

बालोद -बालोद जिले के लघु वनोपज कार्यालय में डिप्टी एमडी पद पर पदस्थ अधिकारी की नियुक्ति एक वर्ष पूर्व संविदा नियुक्ति की गई थी लेकिन नियुक्ति के बाद संविदा कार्यकाल की अवधि समाप्त होने के बावजूद आज भी बालोद जिले के इस कार्यालय में अधिकारी अपने कुर्सी पर काबिज है । मामले को लेकर जिले के वन मंडलाधिकारी से उपरोक्त विषय पर चर्चा वस्तुस्थिति की जानकारी लेने का भी प्रयास किया गया लेकिन मामले में जिले के वन मंडलाधिकारी ने बताया कि मामले का प्रपोजल गया था लेकिन जब अधिकारी से पूछा गया कि क्या एक्सटेंशन प्रपोजल की जानकारी आ गई है जिसपर वन मंडलाधिकारी द्वारा कहा कि ऊपर का निर्देश है लेकिन जब निर्देश की लिखित जानकारी उपलब्ध करवाने की बात कही गई तो वन मंडलाधिकारी ने खुद को अस्पताल में होने का हवाला देते हुए मामले से पल्ला झाड़ते नजर आए ।

वही इस पूरे मामले को लेकर लघु वनोपज सहकारी समिति के जिला प्रतिनिधि हिंसा राम साहू ने बालोद जिले के वनमंडलाधिकारी पर मनमानी का आरोप लगाते हुए उक्त अधिकारी को नियम विपरीत कार्य कराने का आरोप लगाते नजर आए वही हिंसा राम ने बताया कि जब किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का संविदा अवधि समाप्त हो जाती है तो उसके स्थान पर किसी और को इसकी जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए लेकिन बालोद जिले के वन विभाग में अधिकारी सिर्फ अपने मनमानी के चलते भर्रासाही करते नजर आ रहे है। वही पूरे मामले को लेकर जल्द उच्चाधिकारियों शासन स्तर पर शिकायत कर दोषियों पर कार्यवाही की मांग किए जाने की बात कहते नजर आए।

आपको बतादे शासन द्वारा वन विभाग में पूर्व में पदस्थ रहे मधुसूदन डोंगरे को सहायक वन संरक्षक से सेवानिवृत्त के बाद 06/10/2023 को जिला लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित बालोद में सहायक वन संरक्षक के पद पर पुनः संविदा नियुक्ति किया गया था । जिनका कार्यकाल 5 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो चुका है। लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी शासकीय कार्यालय में बिना पुनः नियुक्ति के कार्य लिया जा रहा है जो भी शासन के नियमो के विपरित है। बहरहाल देखना होगा बालोद जिले के वन विभाग में संविदा नियुक्ति समाप्ति के बाद अधिकारी को अपने उच्चाधिकारियों का सरंक्षण कब तक प्राप्त रहता है। मामले में वन विभाग आखिर कब तक शासन के नियमो को अपने जेब रखकर मनमानी करते रहेंगे।

 

 

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