बालोद -छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पर्वों में से एक पर्व कमरछठ शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि के लिए हलषष्ठी माता की पूजा-अर्चना करेंगी। हलषष्ठी छठ माता की पूजा-अर्चना में पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाया जाता है। पूजन के लिए महत्वपूर्ण पसहर चावल बाजार में 100 से 120 रुपये प्रति किलो बिक रहा है । माताएं व्रत की रस्म पूरा करने से सामग्री जुटाने में लगी हुई हैं।इन दिनों शहर के चौक-चौराहों में पसहर चावल की बिक्री हो रही है। पिछले साल की तुलना में इसमें 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। संतानों की दीर्घायु की कामना को लेकर माताएं कमरछठ पर्व पर कठिन व्रत रखकर पूजा- अर्चना करेंगी। इस पर्व पर उपवास तोड़कर खास अन्न ‘पसहर चावल’ का सेवन करेंगी। यह चावल सप्ताहभर पहले बाजार में पहुंच गया है।
बिना हल के ही खेतों में पैदा होता है पसहर चावल
शहर के अलग-अलग स्थानों और दुकानों में यह चावल बिक रहा है। इस चावल की खास बात यह है कि यह बिना हल के ही खेतों में पैदा होता है। हलषष्ठी के पर्व पर इस चावल की मांग अधिक होती है। माना जाता है कि इस चावल से ही व्रत तोड़ने का सदियों पुराना रिवाज है। कमरछठ पर्व को महिलाएं पूरे उत्साह के साथ मनाती है। हलषष्ठी पर्व पर माताएं पूजा करने के स्थान पर सगरी खोदकर भगवान शंकर एवं गौरी, गणेश को पसहर चावल, भैंस का दूध, दही, घी, बेल पत्ती, कांशी, खमार, बांटी, भौरा सहित अन्य सामग्रियां अर्पित करती हैं। पूजन पश्चात माताएं घर पर बिना हल के जुते हुए अनाज पसहर चावल, छह प्रकार की भाजी को पकाकर प्रसाद के रूप में वितरण कर अपना उपवास तोड़ेंगी।
100 से 120 रुपये किलो में बिक रही है पसहर चावल
शहर व गांव के बाजार में इन दिनों पसहर चावल 100 से 120 रुपये किलो में बिक रहा है। बताया जाता है कि इसमें भी अलग-अलग किस्म के पसहर चावल है। मोटा और साफ चावल के भाव तय कर दिए गए हैं। माताएं कठिन व्रत रखकर संतानों की लंबी आयु की कामना करेंगी।
बिना हल चले सामग्रियों की उपयोग करती है महिलाएं
हलषष्ठी देवी को धरती का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इस दिन हल चले जमीन पर माताएं नहीं चलतीं और हल से जोते हुए जमीन से उपार्जित अन्न का उपयोग नहीं करती हैं। इसलिए ऐसी सामग्री जो स्वमेव ही पैदा हुई होती हैं उनकी डिमांड इस दिन बढ़ जाती है। जिसमें पसहर चावल खास होता है। क्योंकि यह बाजार में काफी कीमत पर मिल पाता है। व्रत व पूजा के लिए एक व्रती को 6 नग दोना, 2 पत्तल, 2 दातुन, 6 खुला पत्ता, 1 कासी फूल होता है। वहीं भैंस का दूध, दही, घी, लाई व 6 प्रकार की भाजी की जरूरत होती है। इन सामग्रियों के साथ व्रतियों का समूह (सगरी) खोदकर जल अर्पण कर वरूण देव की पूजा करते है। मान्यता अनुसार पसहर चावल का उपयोग खमरछठ में होता है पर देखा जाए तो यह धान का ही रूप है। इसे सहेजकर रखने के लिए ही संभवतः इस व्रत की शुरुआत हुई होगी।