बच्चों की पीठ पर पोती मारकर कीदीर्घायु की कामना
शाम को पसहर चावल और छह तरह की भाजी व दही खाकर अपना व्रत तोड़ा। पूजा से लौटने के बाद माताओं ने अपने बच्चों की पीठ पर पीली पोती मारकर उनके दीर्घायु की कामना की।नगर के शिव मंदिरों सहित देवी मंदिरों में कमरछठ की सामूहिक पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही। दोपहर बाद मंदिर में एक के बाद एक ग्रुप में आई महिलाओं ने पूजा की और कथा भी सुनी। जो महिलाएं मंदिर तक नहीं पहुंची, उन्होंने घर के पास ही गड्ढा खोदकर सगरी बनाई और मिलकर पूजा-अर्चना की। जिला मुख्यालय के विभिन्न मोहल्लों में महिलाओं ने करमछठ की सामूहिक पूजा-अर्चना की।
सगरी को खम्हार व बेर की टहनियां और कुश से सजाया
माताओं ने मिट्टी से शिवलिंग, नांदिया बैल, नाव, भौंरा, बांटी, आदि खिलौने बनाए। कपड़े का पोथा भी बनाया। सुबह से व्रत रखने वाली माताएं सज धजकर एवं पूजन सामग्री की थाल सजाकर दोपहर के समय अपने घर मोहल्ले के आसपास बनाई गई सगरी स्थल पर एकत्र हुई। जिन्होंने सगरी के एक गड्ढे में दूध एवं दूसरे गड्ढे में जल भरा। मिट्टी से निर्मित सगरी को खम्हार की टहनियों व कुश से सजाया गया और खिलौने रखे गए। वहीं माताओं ने सामूहिक रूप से पंडित की अगुवाई में विधि विधान पूर्वक भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा अर्चना कर कमरछठ पर्व से जुड़ी छह तरह की कथाओं का श्रवण किया। जिसके बाद सगरी मेें सभी खिलौनों एवं छह प्रकार के अन्न अर्पित किए गए। श्रीफल व लाई के साथ छह प्रकार के बीज में महुआ, तिवरा, चना, गेहूं, मसूर, मटर आदि का प्रसाद वितरण किया गया।
पसहर चावल खाया
कमरछठ के दिन महिलाओं ने बिना हल के उपजे पसहर चावल जो खेतों की मेड़ पर होता है, उसे ग्रहण किया। साथ ही गाय के दूध, दही, घी के बदले भैंस के दूध, दही, घी का सेवन किया। महिलाओं ने बताया कि छत्तीसगढ़ में कमरछठ के दिन हल को छूना तो दूर हल चली जमीन पर भी महिलाएं पैर नहीं रखती और हल चले अनाज को ग्रहण नहीं करती।
भगवान बलराम का मनाया जन्म दिन
मान्यता है कि हलषष्ठी के दिन बलराम का जन्म हुआ था और उनके दो दिन बाद जन्माष्टमी को कृष्ण का जन्म हुआ था। वही भगवान कार्तिकेय का जन्म भी हल षष्ठी के दिन माना जाता है। बलराम को शस्त्र के रूप में हल मिला था इसलिए इसे हल षष्ठी भी कहा गया है।