बालोद-गुरुवार को माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में जिले में बड़े धूमधाम से मनाया गया। बसत पंचमी के अवसर पर जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में होलिका दहन के लिए अंडे का पेड़ गाड़कर और पूजा अर्चना कर परंपरा निभाए गई,इसके साथ ही होलिका के लिए लकड़ियां एकत्रित करने का कार्य आज से शुरू हो गया। इस अवसर पर घरों के साथ स्कूलों व कालेज में विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कीगई। ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन पर प्रकृति के सौंदर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है। पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नई पत्ती आने लगती हैं। बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की गई। बसंत पंचमी के अवसर पर स्कूलों में मां सरस्वती की विशेष आराधना की गई। इस दिन महिलाओं ने पीले वस्त्र धारण कर पूजा-अर्चना की।
नगर सहित ग्रामीण अंचलों में होलिका दहन के लिए गाड़ें अंडे का पेड़
जिला मुख्यालय के पुराना बस स्टेंड व बुधवारी बाजार सहित वार्डो में होलिका दहन करने के लिए बसंत पंचमी पर अंडा पेड़ गाड़कर पूजा अर्चना कर परंपरा निभाई गई।वही ग्रामीण अंचलों में होलिका दहन के लिए वसंत पंचमी पर अंडा पेड़ गाड़कर पूजा अर्चना कर परंपरा निभाई गई। इसके साथ ही होलिका के लिए लकड़ियां एकत्रित करने का कार्य शुरू हो गया। एकत्रित की गई लकड़ियां अंडा पेड़ के समक्ष रखी जाती हैं।जिसके बाद होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकठ्ठा करना प्रारभ हो जाता हे।
बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव
पूरे साल को जिन छह मौसमों में बांटा गया है, उनमें वसंत का अपना अलग महत्व है।बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। इस त्योहार को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उस संसार में देखते थे तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी की वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी तथा मलिनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण की हुई जीवों को वाणी दान की, इसलिए उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि देने वाली है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को जिले के सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्रकृति उत्सव के रूप में मनाया गया।