बालोद,,,दीपावली पर्व के दौरान आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गौरा गौरी पूजा का अपना एक अलग हि महत्व है,,इसकी पारम्परिक पूजा अर्चना इस पर्व के लिये अहम मानी जाती है,,,लक्ष्मी पूजा के दो दिन पहले हि गौरा गौरी को पारम्परिक ढ़ंग से जगाने का काम विशेष पूजा अर्चना के साथ प्रारंभ्भ हो जाता है,,और लक्ष्मी पूजा की देर रात तक गौरा गौरी स्थल मे इसकी पारम्परिक पूजा अर्चना होती है।
छत्तीसगढ़ की परम्परा से जुड़े इस गौरा गौरी के पूजा अर्चना मे ग्रामीण बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है,,, यह परम्परा पिछले कई सालो से चली आ रही है,,,,गौरा गौरी के इस जागरण प्रथा को आज भी ग्रामीण कायम रखे हुये है,,,,इस पूरी पारम्परिक पूजा अर्चना को धार्मिक किदवंती से जोड कर देखा जाता है,,,गौरा गौरी जिसे भगवान शिव व पार्वती का अस्तित्व माना जाता है,वनाॅचल व ग्रामीण इलाको मे गोवर्धन पूजा के ठीक दो दिन पहले गाॅव के एक निर्धारित स्थान पर पारम्परिक पूजा पाठ के साथ जगाने का कार्य चलता है,,और गोवर्धन पूजा के दिन सुबह इसके विसर्जन के दौरान शोभा यात्रा निकलता है,,ग्राम भ्रमण के बाद इसका विसर्जन होता है,,,शोभा यात्रा के दौरान ग्रामीणो द्वारा जगह जगह पूजा अर्चना किया जाता है,माना जाता है कि इससे सुख समृद्वि हासिल होती है।