बालोद – प्राचीन समय में बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए और बीमारियों से बचाने के लिए कुछ प्राचीन संस्कार अपनाते हैं ताकि बच्चा निरोगी और बीमारियों से लड़ने में पूरी तरह से सक्षम रहे।
प्राचीन संस्कारो में से एक है स्वर्ण प्राशन संस्कार, यह सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार है जो बच्चे के जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक कराया जाता है। स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा की वह धरोहर है जो बच्चों में होने वाली मौसमी बीमरियों से रक्षा करता है। बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य में स्वर्णप्राशन की बहुत अच्छी भूमिका निभाता है।
वहीं बालोद नगर में संचालित किसलय होम्यो एवम आयुर्वेद एजेंसी संस्कार परिसर दल्ली रोड बालोद में पिछले माह से प्रारंभ हुई मंत्र औषधि स्वर्ण प्रासन संस्कार शिविर इस बार भी 3 एवं 4 अगस्त को रविपुष्य योग दर्श अमावस्या पर निर्धारित समय पर प्रारंभ हुई।पिछले बार जिन 55 बच्चों को मंत्र औषधि पिलाई गई थी उनमें से कुछ की अनुपस्थिति रही लेकिन ग्रामीण अंचल से भंडेरा, भेड़ी, सोरर, बेलमांड, सिवनी, सहित बच्चो के शारीरिक विकास हेतु पालकों ने जागरुकता दिखाई।इस निःशुल्क स्वर्ण प्रासन शिविर में 50 से अधिक बच्चो को मंत्र औषधि स्वर्ण प्रासन संस्कार किया गया । प्रसिद्ध नाड़ी वैद्य पुरुषोत्तम सिंह राजपूत के मार्ग दर्शन में गव्य सिद्ध मनीष दास,कु टेमिन, कु कृपा पटेल द्वारा बच्चो को स्वर्ण प्रासन्न पिलाया गया।
स्वर्ण प्राशन संस्कार क्या है?
स्वर्ण प्राशन संस्कार स्वर्ण (गोल्ड) के साथ शहद ब्रह्माणी, अश्वगंधा, गिलोय, शंखपुष्पी, आदि जड़ी बुटियों से निर्मित एक रसायन है। जिसका सेवन पुष्य नक्षत्र के दौरान किया जाता है। स्वर्णप्राशन संस्कार से बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक गति में अच्छा सुधार होता है। यह बहुत ही प्रभावशाली और इम्युनिटी बूस्टर होता है, जो बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है।
स्वर्ण प्राशन संस्कार से विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता बच्चों पैदा होती है। आयुर्वेद के क्षेत्र से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों एवं आचार्यों ने हजारों वर्षों पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन का निर्माण किया जिसे स्वर्णप्राशन कहा जाता है। स्वर्ण प्राशन का अर्थ होता है स्वर्ण (सोना) का सेवन।
स्वर्ण प्राशन संस्कार कब और कैसे कराया जाता है?
भारत के प्राचीन 16 संस्कारों में स्वर्ण संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार है। हिन्दू परंपरा के अनुसार जब किसी बालक का जन्म होता है तो हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार नवजात शिशु को सोने या फिर चांदी की सली (सलाई) से बच्चे की जीभ पर शहद चटाने या फिर ऊँ लिखने की प्राचीन परंपरा है। मगर आज के समय में बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। जो माता-पिता इस संस्कार का पालन पूरे नियम के अनुसार करते है तो उनके बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता बेहतर होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक माह पुष्य नक्षत्र आता है और उसी नक्षत्र के दिन बच्चे को आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों से निर्मित रसायन पान कराया जाता है। यह क्रम लगभग 12 से 14 महीनों तक लगातार चलता रहता है.
स्वर्ण प्राशन कौन-कौन से बच्चे ले सकते है?
स्वर्ण प्रासन्न को लेकर पुरुषोत्तम राजपूत ने बताया कि जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक के सभी स्वस्थ और अस्वस्थ बच्चे स्वर्ण प्राशन का रस पान कर सकते है। बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या इसके कोई दुष्प्रणाम भी है क्या तो बता दें कि इसके एक भी दुष्प्रणाम नहीं है। यह पूरी तरीके से नेचुरल है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है।