रायपुर/ राजनांदगांव/डोंगरगढ़- जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का देर रात देवलोक गमन हो गया है डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी पर्वत में उन्होंने अंतिम सांसें,विद्यासागर जी महाराज जैन समाज के प्रमुख संत थे कुछ महीने पूर्व विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोंगरगढ़ पहुंचकर जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज से मुलाकात की थी।
राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में विश्व प्रसिद्ध जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का आज दिन रात देवलोक गमन हो गया समाधि (मृत्यु) रात लगभग 2:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली पिछले कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे जैन धर्म के प्रमुख आचार्याओं में से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज थे डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में उन्होंने अंतिम सांसें ली।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन से उपवास धारण और अखंड मौन धारण कर लिया था।
आचार्य पद त्याग किया
9 फरवरी शुक्रवार को दोपहर शौच से लौटने के निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य मुनि शिष्य मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और उन्हें आचार्य पद दिया
अंतिम यात्रा आज
गुरुवर्य श्री जी की अंतिम यात्रा (डोला) आज चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे होगी, आचार्य श्री को चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया जावेगा
कौन है आचार्य विद्या सागर महाराज
जैन संत संप्रदाय में सबसे ज्यादा विख्यात और पूज्य संत विद्यासागर जी महाराज
का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को 30 जून 1967 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, ।उनके भाई महवीर ,अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी , मुनि उत्कृष्ट सागर जी कहलाये।
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
*थोड़ा सा जानिए आचार्य श्री को*
कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।
✅ आजीवन चीनी का त्याग
✅ आजीवन नमक का त्याग
✅ आजीवन चटाई का त्याग
✅ आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन
✅ आजीवन दही का त्याग
✅ सूखे मेवा (dry fruits)का त्याग
✅ आजीवन तेल का त्याग,
✅ सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग
✅ थूकने का त्याग
✅ एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर हर मौसम में।
✅ पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले
✅ शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना
✅ अनियत विहारी यानि बिना बताये पैदल विहार करना
✅ हजारो गाय की रक्षा , गौशाला समाज ने बनाई।