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नही रहे गरीब बच्चो के मसीहा दास सर:- 47 साल से गरीब बच्चो को दे रहे थे निःशुल्क आवास व भोजन,राष्ट्रपति से भी हो चुके पुरष्कृत…कौन है दास सर ..पढ़े पूरी खबर

बालोद-बालोद जिले के युगपुरुष गरीब बच्चो के मसीहा कहे जाने वाले राष्ट्रपति पुरष्कृत सेवानिवृत शिक्षक अमृत दास मानिकपुरी ( ए डी दास) का आज सुबह 93 वर्ष की उम्र में आकस्मिक निधन हो गया ।श्री दास पिछले कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे।बालोद जिला मुख्यालय में गरीब बच्चो के लिए छात्रा वास का संचालन करते थे।जहाँ पर बच्चो को उच्च शिक्षा दिया जा रहा हैं।1976 में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर उन्हें राष्ट्रपति पुरुष्कार से सम्मानित किया गया था।

खुद तकलीफ में पढ़े इसलिए 47 साल से 50 बच्चों के लिए चला रहे हॉस्टल

बालोद के 93 वर्षीय राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त रिटायर्ड शिक्षक अमृत दास अंचल के छात्रों के लिए मसीहा से कम नहीं थे। वे पिछले 47 साल से ऐसा होस्टल चला रहे थे, जिसमें हर साल 50 से ज्यादा छात्रों के लिए रहना और खाना फ्री है। इसके लिए पहले वे अपनी तनख्वाह खर्च करते थे। अब पूरी पेंशन लगा रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि जिस तकलीफ से उन्होंने पढ़ाई की, दूसरे बच्चों को न हो।इस उम्र में उनका यह जज्बा देखकर कई लोग उनसे जुड़ गए हैं। दास का पूरा जीवन जैसे पढ़ाई को समर्पित है।1943 में देवरी धमधा में प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे। तब पूरे दुर्ग जिले में केवल पांच मिडिल व एक हाईस्कूल था। प्रथम श्रेणी से पास थे, लेकिन किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिला। गांव के एक मालगुजार ने मदद की, तब एडमिशन हो सका। तभी तय कर लिया था कि शिक्षा के लिए किसी जरूरतमंद को भटकने नहीं देंगे।जब टीचर बने, तब 1971 में जरूरतमंद छात्रों को होस्टल में मुफ्त भोजन देने का सिलसिला शुरू किया। फिर 1977 में बालोद के शिकारीपारा में अकिंचन छात्रावास बनवा दिया।इसका उद्घाटन तत्कालीन मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री अजीज कुरैशी ने किया था।इस होस्टल से सैकड़ों छात्र निकल चुके हैं। रिटायर्ड आईएएस बीएल ठाकुर को भी उन्होंने पढ़ाया है। अभी उनके होस्टल में छात्र रहते हैं। शिक्षक दास 1991 में बालोद से रिटायर हुए और इसके बाद से उनका पूरा समय छात्रों को समर्पित था।

 

21 साल के उम्र में बने शिक्षक

 

बालोद निवासी एडी दास जिले के लिए कोई नया नाम नहीं है। दास ना केवल जीने की पहचान है बल्कि जिले की शान भी थे। इस उम्र में भी वे कई दिनचर्या स्वयं निभाते थे। 1931 में जन्मे दास 21 साल की उम्र में शिक्षक बन गए थे और उसके बाद से उन्होंने नियमित डायरी लिखना शुरू किया जो आज तक चल रहा था। उनकी डायरी को देखा जाए तो कई अविस्मरणीय संकलन मिलेंगे। कुछ वर्ष पहले तक वे हमेशा डायरी लेकर ही चलते थे लेकिन अब वे डायरी लेकर नहीं चलते हैं, लेकिन जब कहीं घर से बाहर निकलते हैं या अखबार में कोई उन्हें अच्छी चीज दिख जाती है तो उसे वे डायरी में जरूर लिखते हैं। कबीर मंदिर में उनके कक्ष में एक लकड़ी की बहुत पुरानी आलमारी मिली। इस अलमारी में 200 से ज्यादा डायरिया सहेज कर रखी हुई है। इसके अलावा संदूक में और कमरे की रेक में भी डायरिया रखी हुई है। दास सर का अधिकतर समय उनके द्वारा खड़ा किया गया अकिंचन छात्रावास और कबीर मंदिर में ही गुजरता था।

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