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छत्तीसगढ़ का एकमात्र ओपन संग्रहालय जो आम लोगो के लिए हुए बंद… स्थानीय व पालिका प्रशासन की अनदेखी का हो रहा शिकार ..यहाँ पर 12 वी 16 वी सताब्दी की मूर्तियां रखी गई है.

 

.बालोद जिला मुख्यालय के बूढ़ापारा मे स्थित संग्राहलय जहाॅ 12वीं से 16वीं शताब्दी के लगभग एक सैकड़ा पुरातत्वीय मूर्ति रखी गई है…….आज के इस समय मे यह संग्राहलय पूरी तरह उपेक्षित है……..साफ सफाई का अभाव यहाॅ पर साफ तौर देखा जा सकता है…….वही पिछले कुछ सालो से यह आम लोगो के लिये भी बंद है…….यहाॅ का हालात बता रहा है कि जिम्मेदार लोग इस संग्राहलय व यहाॅ पर रखी गई मूर्तियो के प्रति पूरी तरह विमुख है……….यह संग्राहलय प्रदेश का पहला ओपन संग्राहलय है……..बता दे कि बालोद जिला पुरातत्वीय स्थल का धरोहर है…….और आज भी कई स्थानो पर पुरातत्वीय मंदिर, स्थल, व पत्थरो की मूर्ति मौजूद है।


मामले में।स्थानीय लोगो व जानकार अरमान अश्क दरवेश आनंद सहित पूर्व पुरात्तव विभाग के नोडल अधिकारी आरके शर्मा कि माने तो .साल 1992 मे इस ओपन संग्राहलय का निर्माण किया गया…..जहाॅ पर बालोद के बूढ़ापारा, कपिलेश्वर मंदिर समूह, गुरूर के सोरर, डौण्डी ब्लाक के नर्राटोला व अन्य स्थानो से 105 मूर्तियो का संग्रह किया गया…और सभी को इस संग्रहलय मे व्यवथ्स्थत ढ़ंग से रखा गया…बालोद सहित आसपास के लोग इस संग्राहलय मे आते थे….

देखे वीडियो 

 

 

 

अपने अंदर कई इतिहास समेटे इन मूर्तियो को देखकर लोगो को जानने व समझने का अवसर मिलता था..लेकिन पिछले कुछ सालो से यह संग्राहलय उपेक्षित है….संग्राहलय के साफ सफाई व मूर्तियो की देख रेख की दिशा मे कोई गंभीर नही है…….वही कुछ सालो से यह संग्राहलय आम लोगो के लिये बंद है…….गेट पर ताला लगा रहता है……..जिसके चलते संग्राहलय का परिसर धास फूस से पट गया है…….साफ सफाई का अभाव साफ तौर पर नजर आ रहा है……..वही यहाॅ रखी गई मूर्तिया भी उपेक्षित है…….जबकि प्रदेश का यह पहला ओपन संग्राहलय है…….जहाॅ पर कई महत्वपूर्ण पुरातत्वीय मूर्तिया रखी गई है……..जिनके कण कण मे इतिहास छुपा हुआ है……आवश्यकता है इस संग्राहलय की रख रखाव को बेहतर करने का……ताकि इस संग्राहलय मे रखे मूर्तियो व उनके महत्व को समझ सके।

बालोद जिले का ऐतिहासिक धरोहर जो आने वाले पीढ़ी के लिए भी एक शोध या इतिहास को समझने में मददगार हो सकता है…लेकिन सरकारी सिस्टम के लगातार अनदेखी के चलते प्रदेश का एकमात्र खुला संग्रहालय (ओपन म्यूजियम) आज पूरी तरह अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंचने लगी है..जल्द ही यदि इनके सरंक्षण की दिशा में काम नही किया गया तो ये प्राचीन पुरातात्विक धरोहर महज किताबो में सिमटकर रह जायेगी

 

 

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