धमतरी……जहां घास-फूस नहीं उगते थे, वहां आज सब्जियां लहलहा रही है। एक नहीं, साल में तीन-तीन फसल निकल रही है। दर्जनभर लोगों को स्थायी रोजगार भी मिल गया है। यह सब संभव हुआ है एक बेरोजगार इंजीनियर के संकल्प से। शहर में कैरियर बनता नहीं दिखा, तो गांव का रूख किया और उनकी लगन अब औरों के लिए प्रेरणा बन रही है।
कहते हैं कुछ कर गुजरने का हौसला हो, तो असंभव कुछ भी नहीं हैं। बस इसके लिए जरूरत है दिलचस्पी, लगन और मेहनत की। धमतरी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर जंगली रास्ते में बसे ग्राम तुमराबहार में यह हकीकत नजर आता है। इस गांव के आसपास अधिकांश हिस्से में पथरीली जमीन है। कुछ की खेती बाड़ी तो है पर मुरूम की अधिकता के कारण उपज उतनी अच्छी नहीं होती। यहीं लगभग आठ एकड़ की जमीन शोभा महाडिक की है। उनका परिवार भी इस जमीन की कीमत नहीं पहचानता था, लेकिन बेटे अनुज महाडिक 30 वर्ष ने यहां से अब सब्जी रूपी सोना निकालना शुरू कर दिया है। वास्तव में अनुज महाडिक ने भी ऐसा नहीं सोचा था। दुर्ग शहर में पले बढ़े अनुज ने अपने अन्य दोस्तों की तरह शहर में ही मैकेनिक इंजीनियरिंग की डिग्री ली और छत्तीसगढ़ पीएससी की धुन में कुछ साल तक मस्त रहे। बात नहीं बनी तो कोचिंग का रास्ता देखा, लेकिन सीमित सफलता के रास्ते ने उनका मोह भंग कर दिया। ऐसे में उसने सोचा कि अच्छा होगा अपने कौशल का उपयोग कुछ अलग करने में करें।
*आपदा को बदला अवसर में…*
यह कोविड-19 महामारी का दौर था। जब सब महामारी के भय से घरों में कैद थे, तब अनुज ने इसे नए संकल्प के लिए बेहतर अवसर माना। दुर्ग से सीधे ग्राम तुमराबहार पहुंचे और अपनी बेकार पड़ी जमीन को कर्मभूमि के रूप में विकसित करना शुरू किया। आज यहां विभिन्न प्रकार की सब्जियां तैयार हो रही है। आम के बगीचे भी है। साथ में कुक्कुट पालन और बकरा पालन की यूनिट भी तैयार हो गई है। एक के बाद एक फसल तैयार हो रही है और यह युवा इंजीनियर तुमराबहार में एक सफल किसान के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। न सिर्फ इस उद्यम से उसने अपना कैरियर बना लिया बल्कि तुमराबहार के दर्जनभर लोगों को स्थायी रोजगार दे रहे हैं। अनुज ने लगभग आठ एकड़ की जमीन को फार्म हाउस के रूप में विकसित करना शुरू किया है। खेती के साथ-साथ भूजल संरक्षण, मछली पालन के लिए भी वह तैयारी में जुटा है। साथ ही कुछ और बड़े प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहा है। तुमराबहार के विजय मंडावी, उमेन्द्र कुमार मरकम, मुन्नी बाई, त्रिवेणी, रेखा बाई और दशरी बाई ने कहा कि अनुज के आने के पहले यह जमीन बेकार पड़ी थी। पथरीली एवं मुरूमयुक्त मिट्टी के कारण यहां उत्पादन कम ही होता है पर अनुज ने इसे ऐसा संवार दिया है कि उनके गोभी व बैंगन को देखकर हम खुद हैरत में है। अनुज महाडिक ने चर्चा में कहा कि हालांकि मैं शहर में पला बढ़ा हूं, लेकिन बचपन से ही कुछ अलग करने की तमन्ना थी और पीएससी की असफलता ने मुझे इस ओर मोड़ ही दिया। खेती से कुछ करने का मौका मिला और उसी में मेहनत कर रहा हूं। सब्जी फसल से साल में लगभग आठ लाख की आमदनी हो जाती है। गर्मी के सीजन मेें पिछले साल ढाई लाख का आम बिक्री किया था। अब खेती के साथ सह व्यवसाय के रूप में बकरा एवं कुक्कुट पालन शुरू किया हूं। अनुज का मानना है कि सिर्फ धान की खेती पर निर्भर रहने से किसान आगे नहीं बढ़ पाएंगे, उन्हें फसल चक्रीकरण के साथ उन्नत तकनीक और अन्य जिंसों की खेती अपनाना होगा, तभी वे आर्थिक रूप से समृद्ध हाेंगे…
*मामाजी की प्रेरणा काम आ रही…*
अनुज महाडिक ने बताया कि विवेकानंद धमतरी निवासी उनके पिता किशोर राव महाडिक जल संसाधन विभाग में एसडीओ थे। ढाई साल पहले वह रिटायर्ड हुआ है। उनकी मां शोभा महाडिक गृहणी है। वर्तमान में दोनों दुर्ग में निवासरत है। उनके बड़े भाई अंबर महाडिक बैंग्लोर में इंजीनियर है। मामा लक्ष्मण राव मगर जिला शिक्षा विभाग धमतरी में सहायक संचालक है, वे उन्नत कृषि के लिए पहले से प्रोत्साहित करते आ रहे हैं। वे खेती के साथ अन्य सह व्यवसाय के लिए मार्गदर्शन देते हैं और हौसला बढ़ाते हैं।