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आज देवउठनी से वैवाहिक कार्य हो जाएगा प्रारंभ…..भगवान विष्णु को माता तुलसी का क्या श्राप मिला था….देवउठनी की लेकर क्या है मान्यता

बालोद- सोमवार को देवउठनी एकादशी पर छोटी दिवाली मनाई जाएगी। इसी दिन से मांगलिक कार्यों का शुभारंभ भी होगा। गन्नो का मंडप बनाकर माता तुलसी और भगवान सालिकराम का विवाह कराया जाएगा। देवउठनी पर्व के पहले दिवस गन्नो का जमकर खरीदी गई। जिला मुख्याल के बुधवारी बाजार, पुराण बस स्टैंड, धड़ी चौक सहित अन्य स्थानों में गन्नो का ढेर लगा था।

आज धर धर में जाएगी तुलसी विवाह

शाम होने के पहले घर-आंगन की लिपाई कर चौक-रंगोली बनाई जाएगी। तुलसी चौरा के सामने भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर गन्नो का मंडप बनाया जाएगा और घर की चौखट के चारों ओर दीप जलाकर अमरूद, कांदा, बेर, चनाभाजी, सिंघाड़ा और नारियल आदि फल रखकर धूप-दीप जलाकर तुलसी विवाह संपन्ना कराया जाएगा।

भगवान विष्णु को दिया था श्राप

 

शास्त्रानुसार एक बार राजा जालंधर की पत्नी तुलसी की भगवान विष्णु ने परीक्षा ली। राजा जालंधर राक्षसी प्रवृत्ति का था, लेकिन उनकी पत्नी तुलसी पतिव्रता थी। भगवान विष्णु राजा जालंधर का रूप धरकर उसकी पत्नी के पास गए, वह भगवान को नहीं पहचान पाई और उसका सतीत्व भंग हो गया। वास्तविकता पता चलने पर रानी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया, जिससे वह पत्थर बन गए। विष्णुजी को श्राप से मुक्ति के लिए तुलसी के साथ अगले जन्म में विवाह करने का वरदान मिला। अतः देवउठनी एकदशी के दिन माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ होने के कारण इस दिन को तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान विष्णु जागते हैं निद्रा से

कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाया जाने वाला पर्व देवउठनी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस पर्व के संबंध में पंडितों ने बताया कि एकादशी से भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। इस दिन भगवान सालिकराम का माता तुलसी के साथ पूरे विधि विधान से विवाह संपन्ना कराया जाता है। घर के आंगन में गन्नो का मंडप बनाया जाता है व मांगलिक गीत भजन गाकर उत्सव मनाया जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक विवाह आदि मांगलिक कार्यक्रम बंद रहते है तुलसी विवाह के साथ ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो तुलसी में अनेक औषधि गुण होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह के साथ तुलसी के सम्मान के साथ ही उसके संरक्षण समर्थन की प्रेरणा का प्रसार भी इस व्रत के माध्यम से मिलता है।

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