प्रदेश रूचि

कुसुमकसा समिति प्रबंधन ने निकाला था फरमान: 50% बारदाना किसानों को लाना होगा, विरोध में जनपद सदस्य संजय बैस आए सामने, प्रबंधन ने फैसला लिया वापसस्वच्छता दीदीयो द्वारा धरना प्रदर्शन कर अंतिम दिन रैली निकालकर मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को सौंपा गया ज्ञापनउप मुख्यमंत्री अरुण साव ने वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के साथ केक काटकर अपने जन्मदिन की शुरुआत की..वही बालोद जिले के भाजपा नेताओ ने भी लोरमी पहुंचकर दिए बधाईपांच दिनों के शांतिपूर्ण आंदोलन के बाद ट्रांसपोर्टरों का बीएसपी प्रबंधन के खिलाफ प्रदर्शन…… माइंस की गाड़ियों को रोक किया चक्काजाममुख्यमंत्री साय अब ट्रेन से भी करेंगे राज्य के विविध क्षेत्रों का दौरा….बिलासपुर में आयोजित कवि सम्मेलन सुनने अमरकंटक एक्सप्रेस से हुए रवाना…मुख्यमंत्री ने कहा – ट्रेन से यात्रा का आनंद ही अलग होता है


बालोद जिले के इन गांवों में आज भी दशहरा को लेकर अलग अलग परंपरा …कही रावण का नही होता दहन तो कही सीमेंट से बने मूर्ति पर किया जाता है अग्निबाण

बालोद- बालोद जिला मुख्यालय से 3 किमी दूरी पर स्थित ग्राम झलमला में दशहरे पर रावण दहन नही किया जाता। वही नेवारिकला में सीमेंट से बनी रावण की प्रतिमा पर अग्निबाण से किया जाता दहन। ग्राम झलमला जहां पर मां गंगा मैया की बहुत ही विशाल मंदिर स्थित है यहां पर नवरात्रि पर पूरे 9 दिन विशाल मेला लगता है । भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए 9 दिन तक ज्योत प्रज्वलित करते हैं तथा जवारा भी बोया जाता है । भक्तगण अपनी पूरी श्रद्धा के साथ इनका 24 घंटे तक सेवा करते हैं । इस मंदिर को देखने के लिए श्रद्धालुगण सच्ची आस्था के साथ अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए माता से विनती करते हैं दर्शन करके मेले का आनंद लेते हैं । रात में सेवा , भजन , जस गीत , झांकी , सत्संग आदि प्रोग्राम भी रखा जाता है । जिसे देखने के लिए गांव के आसपास के भक्तगण काफी मात्रा में एकत्रित होते हैं तथा उनका आनंद लेते हैं । नवरात्रि के पूरे 9 दिन तक तो खुशी खुशी सब चीज मना लेते हैं । लेकिन जब बात दसवें दिन की जाती है तो गांव में सन्नाटा छा जाता है । जैसे ही नवरात्र का अंतिम दिन खत्म होता है । उसके बाद दसवे दिन दशहरा का दिन यहां किसी भी प्रकार का प्रोग्राम नहीं रखा जाता है यहां की इतिहास बहुत पुरानी है लगभग 100 साल पहले से ही यहां दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है और दीपावली के पर्व में गौरा – गौरी का मूर्ति स्थापित भी नहीं करते हैं ना ही पूजा करते हैं।

आखिर क्यों नही किया जाता रावण दहन

आखिर क्यों नहीं किया जाता है रावण दहन तथा दीपावली के पर्व पर गौरा गौरी का मूर्ति स्थापित नही किया जाता हे । यह बात वहां की बुजुर्गों से पूछने पर उन लोगो का कहना हैं कि यह परंपरा लगभग 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है । जिसे हम लोग भी मानते चले आ रहे हैं । इस बात पर ज्यादा चर्चा ना किया जाए तो वही अच्छा रहेगा । जो हमारे बुजुर्गों द्वारा परंपरा चली आ रही है उन्हें हम भी चलाते आ रहे हैं अब इसे रूढ़ीवादी समझो या परंपरा । बरसों पहले कभी यहां रावण दहन की किया गया था तो यहां कुछ अनोखी घटना घटी थी । जिस कारण गांव वालों ने आज तक दोबारा कभी रावण दहन करने की कोशिश भी नहीं किए । और आज भी यहां रावण दहन नहीं किया जाता है । अगर इस गांव की किसी बुजुर्ग इन सब के पीछे की मुख्य कारण पूछो तो कोई कुछ खास वजह नहीं बताता है ।

नेवारीकला की अनोखी परंपरा सीमेंट से बने रावण की मूर्ति पर अग्निबाण छोड़ते हैं ग्रामीण

जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर बालोद-दुर्ग मुख्य मार्ग पर स्थित ग्राम नेवारीकला में दशहरा पर्व पर सीमेंट के रावण का दहन किया जाता है। सिर्फ सीमेंट के रावण की मूर्ति की पूजा होगी। आजादी के बाद यानी वर्ष 1947 में चंदे के पैसे से ग्रामीणों ने मूर्तिकार से रावण की मूर्ति बनवाई है। सीमेंट से बने रावण की मूर्ति पर अग्निबाण चलाकर दहन की परंपरा पूरी की जाएगी। गांव वाले पूजा पाठ कर यहां अलग तरीके से दशहरा पर्व पर रावण दहन का रिवाज निभाते हैं। यह गांव ऐसा है जिसकी पहचान रामलीला और पिछले 70 साल से सीमेंट से स्थापित रावण की मूर्ति से होती है। गांव के दाऊ योगीराज यादव (81) इस परंपरा को सहेजते आ रहे है।इस तरह यहां दशहरा पर्व पर होता है रावण दहन।ग्रामीणों ने बताया कि सीमेंट से बने रावण की मूर्ति में सात बार अग्निबाण छोड़ा जाता है, फिर ग्रामीण पानी से भरा मटका फोड़ते हैं, तब यह माना जाता है कि रावण दहन हो गया। अधिकांश गांवों में पुतला जलने के बाद ऐसा माना जाता है लेकिन यहां अलग ही रिवाज है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!