
बालोद।बालोद जिला मुख्यालय में जल आवर्धन योजना तहत् फिल्टर फ्लांट होने के बाद भी पानी की समस्या अब भी बनी हुई है। नगर पालिका की उदासीनता और लापरवाही के चलते शहरवासियों को मटमैला गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है। नलों से मटमैला पानी आ रहा है। शहर वासी वर्षा ऋतु में पानी के लिए परेशान हो रहे हैं। स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पा रहा है। शहर में नलों के माध्यम से प्रदाय किए जाने वाला पेयजल दूषित आ रहा है। नगर पालिका जल शुद्धिकरण के नाम पर औपचारिकता निभा रही है। दूषित पेयजल की आपूर्ति कर शहर वासियों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है ।
पुराने ढर्रे में चल रही है पेयजल व्यवस्था
बता दे की करोड़ों रूपए की लागत् से गंजपारा में नल जल आवर्धन योजना के तहत् फिल्टर प्लांट की पूरी व्यवस्था को व्यवस्थित होने में पांच वर्ष से अधिक समय लगा वहीं ये माना जा रहा था कि फिल्टर प्लांट होने से नगरवासियों को साफ शुद्ध पानी सुबह शाम एक एक घंटे मिल पाएगा परन्तु फिल्टर प्लांट व जल टंकियों में बढ़ोत्तरी होने के बाद भी पेयजल व्यवस्था पुराने ढर्रे में चल रही है वहीं गत् 5-6 दिनों से मटमैला पानी की सप्लाई की जा रही है।
फिल्टर प्लांट होने के बाद भी नलों से निकल रही गंदा पानी
*पाररास में कोमल सिन्हा के घर में पीने के लिए भरा गया पानी*
पूर्व में नदी के समीप बने कुंए से सीधे जल टंकियों में पानी भरने के पश्चात् पानी नलों से सप्लाई किया जाता था तब इतना गंदा पानी नहीं मिलता था परन्तु वर्तमान में फिल्टर प्लांट होने के बाद भी गंदा पानी नलों में आना इस बात को संकेत दे रहे हैं कि प्लांट में पानी फिल्टर में लापरवाही बरती जा रही है या जिन पाईपों के माध्यम से नलों में पानी पहुंच रहा है वह लिकेज होगा जिससे गंदा पानी पाईपों में पहुंच रहा है।
शहर में पर्याप्त टंकी होने के बाद भी नगरवासियों को नही मिल रहा है पर्याप्त पानी
जिला मुख्यालय में पानी आपूर्ति के लिए जुर्रीपारा में एक टंकी, गंजपारा में एक टंकी, तहसील कार्यालय के पास दो टंकी व बूढ़ापारा में एक टंकी निर्माण के बाद भी नगरवासियों को पर्याप्त मात्रा में पेयजल की आपूर्ति नहीं हो रहा है क्योंकि कई वार्डों में बोर के माध्यम से भी पानी सप्लाई किया जा रहा है। पूर्व में मात्र 4 पानी टंकी होने के कारण नलों में पानी कम आता था परन्तु अब टंकी अधिक होने के बाद भी नलों में मात्र 15 से 20 मिनट ही पानी आता है इससे स्पष्ट होता है कि टंकियों में जलभराव कम किया जा रहा है, पर्याप्त भराव नहीं होने से नलों में पानी कम आ रहा है।