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आधुनिकता के दौर में दम तोड़ रही परंपराएं … होली पर्व नजदीक लेकिन क्यों सुनाई नही दे रही नंगाड़े थाप…पढ़े ये खबर

बालोद- होली पर्व आने में एक सप्ताह से भी कम बचा है, लेकिन गांव की गलियों, चौक-चौराहों व वाहनों में नगाड़ों की थाप व फाग गीत की गूंज सुनाई नहीं दे रही है। होली पर्व की तैयारियों को लेकर सिर्फ गांव के होलिका दहन स्थल पर लकड़ियां एकत्र है, वह भी शहर में देखने को मिल रहा है। गांवों में तो यह भी नहीं है। 24 मार्च को होलिका दहन और 25 मार्च को होली का पर्व अंचल में धूमधाम से मनाया जाएगा। पर्व को लेकर इस साल कोई विशेष तैयारी नहीं है। जबकि त्यौहार आने में सिर्फ एक सप्ताह शेष है।

पहले बसंत पंचमी से ही सुनाई देती थी नगाड़ो की थाप

पहले बसंत पंचमी से ही नगाड़ो की थाप की आवाज सुनाई देती थी, लेकिन इस वर्ष अब तक क्षेत्र में नगाड़ा बिकना शुरू नहीं हुआ है, होली के पखवाड़े भर पहले से ही नगर के फाग गीत नगाड़ों के धुन के साथ ही सुनाई देता था।अब समय के साथ लोगों के बदलते विचार के साथ सभी समाप्ति की ओर है । लोगों के कान अब फाग गीत सुनने के लिए तरस रहे है । होली केवल पारंपरिक त्यौहार बनकर रह गया है। होली का माहौल पहले बसंत पंचमी के बाद प्रारंभ हो जाता था, हर गली मोहल्लों में फाग गीत गाते लोग नजर आते थे। जगह जगह नगाड़ो की थाप सुनाई देती थी। युवाओं को अब फाग गीतों में दिलचस्पी भी नहीं है कुछ वर्षों पहले तक हर गली में फाग गीत के गाने वालों की अलग टोली होती थी।

आधुनिकता के इस दौर में काफी तेजी से दम तोड़ती नजर आ रही हैं परंपराएं

आधुनिकता के इस दौर में परंपराएं काफी तेजी से दम तोड़ती नजर आ रही हैं। फाल्गुन मास में गूंजनी वाली फाग और नगाड़ों की थाप तेजी से खत्म होती जा रही है। रंगों के पर्व होली में महज कुछ ही दिन का समय शेष रह गया है, लेकिन माहौल में अब तक फाग का सुरूर नहीं चढ़ पाया है। देर रात तक गूंजने वाली नगाड़ों की थाप भी अब तक सुनाई नहीं दी है। बसंतोत्सव की खुमारी महंगाई के चलते धीरे-धीरे दम तोड़ती नजर आ रही है। शहर से लगे ग्रामीण अंचलों में होली के सप्ताह भर पूर्व ही फाग और नगाड़ों की थाप शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है। फिजां में न तो फाग और न ही नगाड़ों की गूंज है। शहर में विभिन्ना इलाकों से प्रतिवर्ष नगाड़ा लेकर विक्रय के लिए व्यापारी भी नही पहुचे हैं।

बोर्ड परीक्षा का भी असर

चारों ओर फाग गीत गाने वाली की मस्ती भरा स्वच्छ पारंपरिक लोकगीत लोगों के उत्साह को दुगुना कर देता था, लेकिन इस बार शुरुआती मार्च माह में दसवीं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा चल रहा है। वहीं रंगोत्सव पर्व आगामी 25 मार्च को मनाया जाएगा। इसके चलते छात्र वर्ग में उत्साह कम दिखाई दे रहा है। वहीं युवा वर्ग व किसान काम काज में व्यस्त है । यहीं वजह है कि नगाड़े की आवाज गूम हो रहा है।

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