पूरी – रथयात्रा का पर्व पूरे भारत में मनाया जाने वाला बहुत ही प्रसिद्द पर्व है. लेकिन यह पर्व बाकी पर्वो से अलग माना जाता है, क्योंकि रथ यात्रा पर्व को घरों या मंदिरों में पूजा पाठ या व्रत करके मनाया जाने वाला पर्व नही है. बल्कि समूचे देश भर के लोग एकसाथ एकत्र होकर इस पर्व को मनाया जाता है. और रथ यात्रा निकाली जाती है.
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रथ यात्रा कब मनाया जाता है?
रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को जगन्नाथपुरी में प्रारम्भ होती है. ये रथयात्रा 10 दिनों की होती है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया से दशमी तक लोगों के बीच रहते हैं. रथ यात्रा का उत्सव सैंकड़ों वर्षों से लगातार मनाया जाने वाला पर्व है। हर वर्ष रथ यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. रथ यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है।
भगवान जगन्नाथ जी को भगवान श्रीकृष्ण और राधा की युगल मूर्ति का रूप माना जाता है. रथ यात्रा की तैयारी हर वर्ष बसंत पंचमी से ही शुरू कर दी जाती है. भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए नीम के चुनिंदा पेड़ की लकड़ियों से रथ तैयार किया जाता है। रथ की लकड़ी के लिए अच्छे और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है जिसमे कील आदि न ठुके हों और रथ के निर्माण में किसी प्रकार की धातु का उपयोग नहीं किया जाता है।
रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का पर्व हर वर्ष मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है. जिसमें से सर्वप्रचिलित मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नें भगवान जगन्नाथ जी से द्वारका दर्शन करने की इच्छा जाहिर की जिसके फलस्वरूप भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं. रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है जिसमें 14 पहिये रहते हैं और इसे तालध्वज कहते हैं, दूसरा रथ 16 पहिये वाला श्रीकृष्ण का रहता है जिसे नंदीघोष या गरूणध्वज नाम से जाना जाता है और तीसरा रथ श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का रहता है जिसमें 12 पहिये रहते हैं और इसे दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है।
तीनों रथों को उनके रंग और लंबाई से पहचाना जाता है।
रथ यात्रा की कहानी
रथ यात्रा के पीछे एक पुरानी कहानी प्रचिलित है की ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था. उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।
फिर 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है जिससे भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ को एक विशेष स्थान में रखा जाता है जिसे ओसर घर कहते हैं।
15 दिन बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर घर से निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है?
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं तब ‘छर पहनरा’ अनुष्ठान किया जाता है. इन तीनों रथों की पूजा करके सोने की झाड़ू से रथ और रास्ते को साफ किया जाता है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का आरंभ होता है. ढोल नगाड़ों के साथ ये यात्रा निकाली जाती है और भक्तगण रथ को खींचकर पुन्य लाभ अर्जित करते हैं।
रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और पुरी शहर से होते हुए नगर भ्रमण कर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है. 10वे दिन रथ पुनः मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. 11वे दिन मंदिर के द्वार खोले जाते हैं. इस दिन भक्तगण स्नान कर भगवान के दर्शन करते हैं।
रथ यात्रा का महत्व
पुरी स्थित वर्तमान मंदिर 800 वर्षों से भी पुराना है जिसे चार पवित्र धामों में से एक माना गया है. कहा जाता है कि जिन भक्तों को रथ यात्रा का रथ खींचने का सौभाग्य मिलता है वो बहुत भाग्यवान माने जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऐंसी मान्यता है कि इस दिन भगवान स्वयं नगर भ्रमण कर लोगों के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी बनते हैं. ऐंसा भी माना जाता है कि जो भक्त रथयात्रा में भगवान के दर्शन करते हुए एवं प्रणाम करते हुए रास्ते की धूल कीचड़ आदि में लोट लोट कर जाते हैं उन्हें श्री विष्णु के उत्तम धाम की प्राप्ति होती है।
सबसे खास बात यह है कि रथ यात्रा के दिन कोई भी मंदिर एवं घर में पूजा न कर सामूहिक रूप से इस पर्व को सम्पन्न करते हैं और इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं देखा जाता है
रथयात्रा की तैयारी की पिछले साल की कवरेज
पुरी शहर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है जिसे शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र, पुरूषोत्तम पुरी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है. इस शहर के लोग प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ को ही मानते हैं और पुरी को भगवान जगन्नाथ जी की मुख्य लीला भूमि माना जाता है. यहां का मुख्य पर्व भी भगवान जगन्नाथ की रात यात्रा है. रथ यात्रा पर्व बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. रथ यात्रा के दर्शन लाभ के लिए देश विदेश से लाखों भक्त आते हैं।