बालोद,। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में निकाले गये औषधि टेंडर को लेकर रार फैली है। कई विवादों और आपत्तियों के बीच आज आख़िरकार औषधि, उपकरण एवं अन्य सामग्री क्रय का ये टेंडर खोल दिया जाएगा। चहेते फर्म को टेंडर दिलाने नियम विरुद्घ शर्तो को लेकर सेहत विभाग का ये टेंडर सुर्खियों में है। मामला संज्ञान में आने के बाद जिला प्रशासन नें कार्यवाही की तो टेंडर निरस्त भी हो सकते है। 7 नवंबर को निकले इस टेंडर को खोले जाने की तिथि 12 दिसंबर याने आज है। टेंडर पर नजर डाले तो अनुमानित 1 करोड़ की ये निविदा शासन की मंशा के अनुरूप नही निकले। नियम की जटिलताओं की वजह से टेंडर विवादों में है। जानकारों की मानें तो टेंडर 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाले वित्तीय वर्ष के लिए है। चालू वित्तीय वर्ष के इस टेंडर में काफी विलंब किया गया। इसे मार्च माह तक पूरा कर लेना था। वित्तीय वर्ष समाप्त होने में महज 3 माह ही शेष है ऐसे में एक साल का टेंडर कराए जाने को लेकर सवाल उठने लगे है।
● शासन की चौखट तक पहुंचा टेंडर का मामला ●
नियमों की धज्जियां उड़ाकर स्वास्थ्य विभाग में जारी टेंडर का मामला शासन की चौखट तक पहुंच गया है। टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित कई फर्मो ने सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री व विभागीय मंत्री को इस मामले को लेकर पत्र भेजा है। हालांकि, शासन के किसी निर्देश से पहले ही खबरों का संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से इस मामले की जांच की उम्मीद लगाई जा रही है। कहा जा रहा कि जिला प्रशासन को कार्यों व टेंडर प्रक्रिया से जुड़ी पूरी पत्रावली तलब करनी चाहिए।
● टेंडर प्रक्रिया में मानकों की अनदेखी ●
सामग्री की आपूर्ति के लिए निविदा का आमंत्रण जरूरी है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा निविदा तो निकलवाई गई, पर नियमों को दरकिनार करके। चहेते को टेंडर देने नए नियमो के पेंच से मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सेल टैक्स प्रमाण पत्र, आडिट रिपोर्ट के बाद एक और नियम विरुद्ध शर्त से विवाद गहरा गया है। दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी टेंडर के नियम एवं शर्त क्रमांक 24 में निविदाकर्ता जिनके द्वारा फर्म संचालित किया जा रहा है को जिस जिले में फर्म संचालित है, कों फर्म के ब्लैक लिस्टेड ना प्रमाण पत्र खाद्य एवं औषधि प्रशासन से प्राप्त कर निविदा के साथ संलग्न करना अनिवार्य रखा गया है। जबकि खाद्य एवं औषधि प्रशासन में ब्लैक लिस्टेड वगैरा कुछ नही होता। न ही होने न होने का कोई प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। ऐसे में वेंडर इस तरह की शर्तों को अनुचित ठहराते हुए इसे अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लिया गया निर्णय बता रहे है।
● बड़ी खरीद के लिए है टेंडर का प्रावधान ●
अगर कोई सामान किसी संस्था में अधिक मात्रा में लगता है तो उसके लिए टेंडर बुलाए जाने का प्रावधान है। इससे संस्था को बाजार में कंपीटिशन का फायदा मिलता है और रेट भी सही मिलते हैं। साथ ही उसमें पूरी तरह से पारदर्शिता होती है, लेकिन बालोद जिले का स्वास्थ्य विभाग इस तरह पारदर्शिता में विश्वास नहीं रखकर कोटेशन से खरीदारी कर रही है। यह खरीदारी कई वर्षों से चल रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मनमानी के कारण बड़े-बड़े काम भी टेंडर की बजाए कोटेशन से किए जा रहे हैं। इस साल विभाग करोड़ो रुपए के काम कोटेशन से ही करा चुका है। कोरोनकाल से पहले विभागीय स्तर पर हर वर्ष निविदा निकाली जाती रही है। लेकिन इस वर्ष सारे नियमों को ताक पर रखकर विभागीय पदाधिकारी बिना निविदा निकाले अपने चेहते फर्म को काम कागज पर ही आवंटित कर दिए।
हमारे यहां ब्लैक लिस्ट होने का कोई भी सर्टिफिकेट नही देते है। अभी तक कोई भी नही दिया है: दीपिका चुरेन्द्र ड्रग इंस्पेक्टर, खाद्य एवं औषधि प्रशासन