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जब खुद का ही जीवन अंधेरे में हो वो भला दूसरे के जीवन मे उजाला कैसे ला पाएंगे… लेकिन बालोद जिले के इस गांव के एक शिक्षक जो दोनो आँखों से है दिव्यांग उन्होंने कर दिखाया ऐसा कारनामा

 

 

रायपुर/बालोद- आज पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहे है और शिक्षकों के सम्मान में राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर पर कई आयोजन होते है जिसमे शिक्षको का सम्मान भी किया जाता है क्योंकि शिक्षक ही हैजो समाज को एक नई पीढ़ी का निर्माण करते है और समाज नया उजियारा लाता है ..लेकिन जब शिक्षक का ही जीवन अंधेरे में हो वो दूसरे के जीवन मे।कैसे उजाला ला पाएंगे लेकिन बालोद जिले के वनांचल गांव के शिक्षक ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो खुद बचपन से दोनो आंखों से दिव्यांग है और आज नए पीढ़ी को आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रहे है आज हम ऐसे ही शिक्षक के बारे में बताने जा रहे है,आज हम आपको बालोद जिले के एक ऐसे दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी के बारे में बताने जा रहे है… जो बचपन से ही आँखों से दिव्यांग है… इनके जुनून और आत्मविश्वास के आगे सफलता ने भी घुटने टेक दिए।

बालोद जिले के जंगल और पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गांव देवपांडुम.जो कि आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक डौंडी के अंतर्गत आता है..यहां के प्राथमिक स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थ दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी.जो कि आखों से दिव्यांग है.बचपन के एक हादसे की वजह से धीरे धीरे इनके आँखों की रौशनी चली गई..बालमुकुंद मूलतः देवपांडुम के ही रहने वाले है… शासन ने इन्हें गांव के ही प्रायमरी स्कूल में पदस्थापना दे दी…. बालमुकुंद बचपन से ही देख नही पाते है. 2008 में व्यापम परीक्षा के जरिये इन्होंने सफलता हासिल की… और उन्हें यहां खुद के ही गाँव मे पोस्टिंग मिल गई… बीते 14 साल से ज्यादा से बालमुकुंद यहां के प्रायमरी स्कूल में अपनी निरंतर सेवाएं दे रहे है…. बच्चों को भी इनसे खासा लगाव है… घर से स्कूल और स्कूल से घर ये बच्चो के साथ ही आया जाया करते है… यू कहे कि बच्चे अपने शिक्षक बालमुकुंद की लाठी है… बालमुकुंद ब्रेनलिपि के माध्यम से बच्चो को पढ़ाते है…. बालमुकुंद बताते है कि बच्चो को पढ़ाने के बाद वे बीच बीच में उनसे सवाल भी करते है… की जो उन्होंने पढ़ाया है वह समझ आ रहा है या नही…?… स्थानीय होने की वजह से बच्चों के साथ तालमेल भी काफी अच्छा है…. बच्चो को पढ़ाने में दिक्कत नही होती… उनके द्वारा पढ़ाये गए सभी चीज़ों को बच्चे बड़े ही आसानी से समझ जाते है.

बच्चो को भी बालमुकुंद द्वारा पढ़ाये गए सभी विषय आसानी से समझ आ जाते है… बच्चो को भी मालूम है कि वे आँखों से देख नही सकते… जिसकी वजह से बच्चे पूरी शिद्दत से पढ़ाई करते है… वही प्रभारी प्राचार्य की माने तो बालमुकुंद अपना पूरा अध्यापन कार्य ब्रेनलिपि पुस्तक के जरिये करते है…. बच्चे भी उनके पढ़ाने के तरीके से बेहद खुश है….. उनके द्वारा कहे गई बातों को आसानी से समझते है… पढ़ाई के अलावा भी बालमुकुंद अन्य गतिविधियां जैसे नैतिक शिक्षा, खेलकूद और चित्रकला भी बच्चों को कराते है…. बालमुकुंद स्कूल कार्य के प्रति बड़े ही निष्ठावान है… समय पर स्कूल आना और स्कूल से जाना… इनकी दिनचर्या में है

 

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