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*बालोद जिला मुख्यालय में कृष्मकुंज का हुआ शुभारंभ..संसदीय सचिव व विधायक संगीता सिन्हा हुए शामिल… 20 प्रजाति के पौधों का किया गया रोपण*

बालोद- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर शुक्रवार को जिला मुख्यालय में रेंज ऑफिस में कृष्ण कुंज का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर ससदीय सचिव कुँवर सिंह निषाद,विधायक संगीता सिन्हा, कलेक्टर गौरव सिंह,एसपी जितेंद यादव,डीएफओ आयुष जैन , नगर पालिका अध्यक्ष् विकास चोपड़ा,ब्लाक काग्रेस चंद्रेश हिरवानी की उपस्थिति में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा पर पूजा अर्चना कर कृष्ण कुंज का लोकापर्ण किया गया। इस कृष्ण कुंज में ओपन जिम व बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला, फिसलपट्टी सहित अन्य मनोरंजन के साधन की व्यवस्था की गई है।

कृष्ण कुंज में 20 प्रजाति के पौधों का रोपण

लगभग एक एकड़ की भूमि में सांस्कृतिक महत्व के जीवन उपयोगी वृक्षों का रोपण करते हुए कृष्ण कुंज विकसित किया गया है। इनमें आम, ईमली, गंगा ईमली, जामुन, बेर, गंगा बेर, शहतूत, तेंदू, चार, अनार, गूलर कैथा, कदम्ब, पीपल, नीम, बरगद, बबूल, पलाश अमरूद, सीताफल, बेल और आंवला मिलाकर 20 से अधिक प्रजाति के पौधे का रोपण किया गया है।

बीच में स्थापित हुआ कृष्ण भगवान की प्रतिमा

वन परिक्षेत्र कार्यालय के मुख्य दरवाजा से ही कृष्ण कुंज प्रवेश होगा। कृष्ण कुंज में प्रवेश करते ही एक ओर बच्चों के मोनोरंज के साधन हैं। दूसरी ओर पार्क में घूमने के लिए रास्ता बनाया गया है। पीछे भाग में ओपन जिम है। पार्क के बीचोबीच कृष्ण भगवान की प्रतिमा स्थापित किया गया।


वृक्षों के संरक्षण के प्रति जागरूकता एवं वृक्षों के महत्व से जनसामान्य को परिचित कराने के लिए शासन द्वारा कृष्ण कुंज की पहल की गई है। प्राचीन परंपरागत वृक्ष हमारे अमूल्य विरासत हैं। नगरीय क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर पौधरोपण करने एवं संवर्धन करने तथा सांस्कृतिक विरासत से जोडऩे के लिए इसका नाम कृष्ण कुंज रखा गया है।कृष्ण कुंज परिकल्पना में उल्लेखित प्रजातियों का रोपण किया जाना है। उन प्रजातियों में ऐसे प्रजातियों का रोपण प्रस्तावित है, जो स्थानीय परंपरा, जीवनोपयोगी एवं सांस्कृतिक महत्व से संबंधित है। कृष्ण कुंज को विशिष्ट पहचान दिलाने के लिए राज्य में एकरूपता प्रदर्शित करने हेतु बाउण्ड्रीवाल गेट एवं कृष्ण कुंज का लोगों तैयार किया गया है। कृष्ण कुंज के लोगों में एवं बाउण्ड्रीवाल गेट में हमारी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक महत्व एवं परम्परा दर्शित है, जिसे देखने मात्र से ही छत्तीसगढ़ की अस्मिता प्रकट होती है।

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